मंज़िल
मंज़िल
बढ़ता चल तू ए मुसाफिर
मंज़िल तेरे निकट होगी
हौसला रख दिल में अपने
ख्वाहिशें तेरी पूरी होंगी
संकल्प ले यदि मन में अपने
उत्साह कभी ना कम होंगे
बढ़े थे , बढ़े है, बढ़ते रहेंगे
हर बेड़ियों को तोड़ते रहेंगे
अगर दूर दिखती हो तेरी मंज़िल
सब्र कर तू कभी ग़म ना कर
झोपड़ी से महल यदि है
तुझ को बनाना
तो कोशिश को अपने कभी
कम ना कर
बढ़ा चल, बढ़ा चल तू हर
क्षण बढ़ा चल
तेरी मंज़िल मिलेगी कभी ना कभी
विश्वास रख तू ख़ुदा पर अपने
ख़्वाहिश तेरी पूरी होगी
बढ़ता चल तू ए मुसाफिर
मंज़िल तेरे निकट होगी