पतंगों की तरह
पतंगों की तरह
रिश्ते पतंगोंं की तरह होते हैंं
हवा में उड़ने दो जितना जी चाहे।
पर डोर अपने हाथ में रखो
डोर छूटी नहीं कि बिखर जाएगें।
हवा में चारों दिशाओं में उड़ जाएगें
मुझसे भी कुछ ऐसी ही भूल हो गयी।
अब हाथ में न डोर है न पास में
पतंग और न पतंगों की तरह रिश्ते
और मैं ? कभी खाली हाथ और
कभी खाली आकाश को तक रही हूँँ।
