कुछ मेरी कलम से
कुछ मेरी कलम से

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जो किसी से ना कहा
वो तुमसे कह रहे हैं
ऐ कागज़ के टुकड़े,
जरा गौर फरमाना
अपना दिल आज हम
तुम पर लिख रहे हैं
ह्रदय किला
कर दो तो ऐसी घेराबंदी,
ह्रदय किला के चारों ओर
ना दुश्मन भीतर आ पाए,
ना दोस्त बहार जा पाए
कर दो इन मीनारों को
उँची इस कदर
की इन्सानियत के अश्रु,
गिरते हुए भी सूख जाए
कर दो ऐसी मोटी इन
सीमाओं को
की दर्द भरी चीख अंदर
दब कर मर जाए
कर दो ऐसी रौशनी
किला के अंदर
की ग़म ऐ अंधेरा
अन्धा हो जाए
कर दो मशाल मेरे
ह्रदय में कायम
की बुझती हुई रूह में
जोश आ जाए
कर दो ऐसी घेरा बन्दी
ह्रदय किला की
तीर अपने चलाये या पराये,
हो फतह बस हमारी
हो फतह बस हमारी