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JYOTI ARORA

Abstract

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JYOTI ARORA

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रिशतों की पोटली ( 1 Nov)

रिशतों की पोटली ( 1 Nov)

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रिश्तों की पोटली समझना सबके बस की बात नहीं

जिनको ज्ञान है इस पोटली का उनको लगता आघात नहीं

जो होता नहीं वो दिखता है यहाँँ जो दिखता नहीं वो होता हैं

इस कलयुगी सयानी दुनिया में हर निष्कपट आदमी रोता हैं

अपने सवार्थ सिद्ध करने को सबके पास हैंं तर्क यहाँ

इस हमाम में सब नंगें हैं न्याय की बात तुम करो जहाँ

जैसे - जैसे परिवारों में अगली पीढ़ियां आती हैं

ऐसे अन्यायों के कारण रिशतों की लाशें बिछ जाती हैं

बड़े बुजुर्ग भी इन मसलों में अपना रंग दिखाते हैं

अपने दुर्योधनों की खातिर धृतराष्टृ बन जाते हैं

कितनी सदियाँ बीत गई पर हालात अभी न.बदलें हैंं

भाई चारे प्यार मोहब्बत की बातें सब नकली हैंं

वो वक़्त ना जाने कब आएगा होगा जब कोई घात नहीं

रिश्तों की पोटली समझना सबके बस की बात नहीं

जिनको ज्ञान है इस पोटली का उनको लगता आघात नहीं।


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