सफेद झूठ गजल
सफेद झूठ गजल
तेरी झील सी गहरी आंखों में साहिल नहीं नजर आए।
तेरे गेसू जब भी मेरे चेहरे पर झुके तो सांझ हो जाए
चांद जलता है तेरे शबनमी चेहरे के सोज से जानम।
खुदा जिसने तुझको बनाया तेरे रूप को देख इतराए।
तमाम फूल गुलशन के हसरतों से तकते तेरे जलवे को
जब भी मुस्काती सुबह की रोशनी संसार में उतर आए।
चांद तारे में जमीन पर मैं बिछा दूंगा तेरे कदमों के तले।
मेरी पलकों में रहे कि जमाने की नजर तुझे न लग जाए।
हम हमेशा से तेरे वास्ते लिखते हैं सफेद झूठ गजल
जो दिल मेरा गधी से लगा फिर तो वो परी नजर आए।

