सोचता हूं मैं
सोचता हूं मैं
कभी सोचता हूं मैं
कि अकेला, तन्हा हूं मैं
कहां से चला था मैं,
आज, पहुंचा कहां हूं मैं
सुनहरे से थे कभी वो पल,
अब बीते हुए हैं वो पल
बहुत याद आते हैं मुझे,
गुज़रे हुए, तमाम वो पल
कभी सोचता हूं,मैं
कौन हूं, क्या हूं मैं
कहां से चला था मैं,
आज, पहुंचा कहां हूं मैं
ऐ काश ! फिर से आ जाते
मेरे दिल का क़रार बनकर
पलकों पे मैं छुपा लेता,
आंखों में रख लेता संजोकर
कभी सोचता हूं मैं,
कि क्यों बना हूं मैं
जब मैं अकेला ही था,
फिर क्यों अकेला, तन्हा हूं मैं।