सोचो, ऐसा भी होता है
सोचो, ऐसा भी होता है
ध्यान से सुनो तो,
हर चीज़ कुछ कहती है,
कभी सोचा है,
क्यों नदियों की किलकारी,
शोर नहीं संगीत बन जाती है,
क्यों कोयल की कूक भी,
दिल के तार छेड़ जाती है,
मनो न मनो इनकी मधुरता ही,
हमारे मन में घर कर जाती है !
क्यों फूलों की खुश्बू और,
चाँद की चांदनी,
सब का ध्यान खिंच ले जाती है,
क्या ऐसा है तारों में जो,
इन्हे देख सारी रात काट जाती है,
पेड़ के पत्ते तक अनदेखे नहीं होते,
पर कभी- कभी इंसान की
पहचान तक धुंधली पड़ जाती है !
कुदरत चुपचाप बहुत कुछ
बोल रही है,
मधुरता और सादगी से,
अमृत घोल रही है,
इंसान भी कुछ सीखे इससे,
ये सबका सच्चा मोल तोल रही है !
