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दयाल शरण

Inspirational

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दयाल शरण

Inspirational

सोच

सोच

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क्यों तुम्हें लगता है कि

मैंने तुमसे, तुम्हारा, कुछ छीना है?

तुम्हारे ख्याल है, तुम्हारे अपने है,

तालीम से खुदगर्जी मैंने नहीं सीखी।


बेवजह फिर मशरिफ -मगरिब की बातें

फिर से बे-अदबी, खलिश, बेसबब-सी जिद।

रिश्ते निभाना भी इक इबादत है,

मस्जिदों-मन्दिरों में खैरात से नहीं मिलते।


गुरूर किसका,ओहदे का, या इल्म का दोस्त

तालीम घरों में पर्दे देती है,दीवार नहीं देती।

मुस्कुरा सको तो कल मुझको वहीं पे मिलना

धूप बन तुम्हारें आंगन से मै गुजरूँगा जरूर।


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