सन्त कबीर
सन्त कबीर
लहरतारा तालाब के तट पर,
काशी प्रगटे आय कबीर।
नीरू नीमा दम्पति देखा,
हरषाए वो पाय कबीर।।
सन्तान हीन थे पा कबीर,
पाला उनको निज सुत समान।
थे पढे लिखे कुछ नहीं किन्तु,
संगति से पाया उच्च ज्ञान।।
साधू संगति हरि भजन सदा,
करने मे वह हरषाते।
सच्चे गुरु की थी तलाश,
जो जीवन मुक्त कराते।।
रामानंद से बङे जतन से,
दीक्षा कबीर ने थी पाई।
आडम्बर पाखण्ड कलह,
अज्ञान की निशा मिटाई।।
एक ईश से सब उपजे सब,
हाङ मास का तन पाया।
ऊंच नीच है नहीं जगत में,
फिर क्यो भ्रम को फैलाया।।
मिलकर रहो गुरू को मानो,
प्रभु का नित प्रति ध्यान धरो।
करनी ही सुख दुख का साधन,
दीन हीन का त्रास हरो।।