सनम
सनम
तेरे दिल के बता दें मुझसे जहान में क्या
हाँ और बोलने को रखता ज़बान में क्या
तू चाँद सी सूरत वाला ख़ुद है ए सनम जब
तारीफ़ शेर पढ़ूँ तेरी मैं क्या शान में क्या
रख तू नज़र मुहब्बत से अपनी भरी हमेशा
रक्खा नहीं कुछ भी ऐसे यूँ गुमान में क्या
तू हो गया खफ़ा जो है इतना आज ख़ुद में
की ऐसा कह गया तेरे वो कान में क्या
जब हर तरफ़ सितम के ही खंजर रोज़ चलते
की सांस लें कैसे ऐसे इस अमान में क्या
ऐसी हुई कहाँ दिल की ही ख़ुशी गुम मेरी
सारे ही ढूँढ़ आया हूँ मैं जहान में क्या
तू छोड़े है अदावत के तीर जो आज़म पे
तेरे नहीं मुहब्बत का है तीर बान में क्या।
आज़म नैय्यर