STORYMIRROR

Jagrati Verma

Drama Tragedy Crime

4  

Jagrati Verma

Drama Tragedy Crime

सनक

सनक

1 min
224

एक लड़का था दीवाना सा

एक लड़की पर वो मरता था

सुबह शाम आते जाते

उसका पीछा करता था


उसे अपने दिल का हाल सुनाया

थोड़ा बहलाया, थोड़ा समझाया

राज़ी न हुई तो

डराया, धमकाया


बिन कुछ सोचे, बिन कुछ समझे

एक दिन किसी अनजानी सनक में

कुछ उसके ऊपर फेंका, चिल्लाया

तुझे समझाते समझाते गया थक मैं


फिर क्या हुआ वक्त ठहर गया

कहीं उसका सबर गया

जैसे जल एक शहर गया

उसका चेहरा बदल गया… 


उसकी खुशियाँ सब वीरान थी

किसी फूल से मानो खुशबू छिन गई 

जीते जी श्मशान थी

वो सूरत ही अब उसकी पहचान थी… . 


बड़ी हिम्मत कर फिर खड़ी हुई

उस सनकी से लड़ने को

कुछ ख्वाब आवारा चुनने को

कुछ राग दोबारा सुनने को


कई जंग हुईं, तकरार हुई

नवजात हिम्मत को फिर मार ही डाला

उस सनकी को ऐसी सनक सवार हुई

मानवता शर्मशार हुई

हार जीत गई, जीत की हार हुई

ये कहानी किसी एक रोज़ की नहीं

ये घटना हर बार हुई


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama