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Ratna Pandey

Classics

4  

Ratna Pandey

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संघर्ष

संघर्ष

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मां का जब से घर छूटा, संघर्ष बन गया फिर जीवन,  

चुलबुलाहट जितनी थी अंदर, हो गया उनका मर्दन, 

  

नहीं आ सके जीवन में, फिर कभी वह सुकून के पल,  

ज़िम्मेदारियों के नीचे दब गया, जीवन का हर एक पल, 

 

बीत गई जवानी पूरी, फिर भी खत्म ना हो सका संघर्ष,  

स्वयं के लिए दो पल जी लें, नहीं मिला कभी ऐसा हर्ष,  

 

मांग रहा मन भगवान से, कुछ पल तो मेरे नाम करो,  

मेरे जीवन का क्या, मेरा ही हो न सकेगा एक भी पल,  

 

थक गई जिम्मेदारी पूरी करते-करते, अब तो हार गई हूं,  

जीवन का अंतिम पड़ाव, स्वयं के लिए जीना चाह रही हूं,  

 

किंतु विचार ऐसा आते ही, धिक्कारने लगा मुझे मेरा मन,  

उमड़ रहे विचार हृदय में, सही राह दिखा दो हे भगवान, 

  

तभी हृदय से आवाज ये आई, संघर्षों के बिना कैसा जीवन,  

हालातों से घबरा जाना, ऐसा तो नहीं होता नारी का जीवन,  

 

तू थकना कभी ना हार के, चाहे कठिन हो जीवन के रास्ते,  

जीना उस को ही कहते है, जो जीता है दूसरों के भी वास्ते,  

 

जीना सीखो वृक्षों से, जो आंधी में भी डटकर खड़े रहते है, 

फिर भी ताउम्र पूरी निष्ठा से, दूसरों के लिए जिया करते है,

 

तुम भी हालातों पर काबू पा सकती हो, संघर्षों में वह ताकत है,  

प्राण वायु हो परिवार की तुम, तुम ही तो उनकी ताकत हो।


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