संघर्ष
संघर्ष


अतीत के कर्मों, पर ही
भविष्य की इमारत, होती खड़ी।
पाप क्या पुण्य क्या आज
स्थिति का, दुनिया आकलन करती।।
कभी रहे होंगे, हमारे बुजुर्ग
सक्षम, संपन्न और खुशहाल।
आज की पीढ़ी, सोच रही
संघर्ष कब तक, कब होंगे मालामाल।।
कहते हैं लोग, माँ बाप का
किया धरा, बच्चे हैं भुगतते।
गर अतीत था, हमारा शानदार
तो अब हम, किसलिए डरेंगे।।
अब अतीत तो, बीत चुका
हम थे या नहीं, क्या फर्क पड़ता।
अब हम हैं, आज तो परिश्रम से
अच्छा करें, फर्क है पड़ता।।
ना अतीत ना, अब इसके
परे कुछ, भी तो नहीं।
अतीत गढ़ता, हमेशा अब
इसके परे, कुछ तो नहीं।।
जितना भूलना चाहो, अतीत को
अब बनकर वह, सामने आता।
समझदारी से अब, को बनाओ
परे होकर भी, नाम दे जाता।।