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Bhavna Thaker

Romance Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Romance Tragedy

संगदिल

संगदिल

2 mins
378


तुम्हारे दिल में झाँका आज

रिक्तता,खामोशी,

और विरक्ति से सजा खंड़हर पाया..!


ये लो तभी मेरी तुम में आसक्त,

चिल्लाती शोर से सराबोर,

ताजमहल सी जवाँ चाहत की सदाएँ

तुम्हारे दिल की दहलीज़ से

टकराकर रोती बिलखती लौट आती है...!


कितनी संगदिली से नर्म लहजों में

निबटा देते हो,

क्यूँ बल नहीं पड़ता

तुम्हारे एहसासो में छुपे मैं को...!


सदियों से आगाज़ देती

मेरी तमन्नाएँ देखो न वो

भूखे नंगे बच्चे सी तड़प रही है,


तुम शून्य से तक रहे हो

जैसे अमीर कोई हवेली से

झाँकता है उस बच्चे को,


बस तिजोरी तो भरी पड़ी है

स्पंदनों की देने से कतराते हो..!

तरस ना दया, देखते हो एैसे ग़ुरूर से

जैसे मेरी पीड़ा पे इतरा रहे हो,


देखो ना वो बच्चा कैसे तकता है

उम्मीद से हवेली की ओर

टुकड़ा भर रोटी की चाह में,

माँग रही हूँ मेरी हेसियत से परे ?

या हवेलियों की हेसियत नहीं ?


ये दिल भी तो गरीब बच्चा है लकीरों में

नहीं उसकी ख़्वाहिश जो कर बैठा है,

ये दिल मेरा,

एकतरफ़ा चाहत के अंजाम से बेख़बर,

पूजा किये जा रहा है एक पत्थर की,

आराध्य को इल्म भी नहीं,


वो क्या दे पाएंगे मुठ्ठी भर मोहब्बत

गरीब खंड़हर हवेली के मालिक..!

लो फ़ना हो गया आज

भूखा बच्चा रोता, बिलखता,


दफ़न कर दो हवेली के आँगन में मिट्टी ड़ालकर,

क्या पता बेमौसम बरसात भी हो

कभी फूट निकले कोंपल उसकी कब्र पे,

कोई फूल खिले तो चढ़ा लूँ आराध्य के चरनों में।

क्या कहोगे इसे मेरा एकतरफ़ा अँधा प्यार ?


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