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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

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निखिल कुमार अंजान

Inspirational

स्नेह को स्नेह दे दो

स्नेह को स्नेह दे दो

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माँ को ममता कह दूँ

ममता को आँचल कह दूँ

आँचल को स्नेह कह दूँ

स्नेह को क्या कहूँ भला 

वह तो स्वयं एक नारी है


जो रहती सदैव पास हमारे

माँ बहन बेटी पत्नी जाने

कितने संबंधों में जुड़ी है

स्नेह की कड़ी हमारी तुम्हारी

स्नेह से स्नेह पाकर स्नेह को

स्नेह देने में क्यों विचलित

हो जाते हो


पुरुषार्थ कम न होगा तुम्हारा 

क्यों इससे व्यर्थ ही घबराते हो

इसी कोख से जन्म लिया है

इन हाथों ने राखी बाँधी है

इससे तुमने पिता का

संबोधन पाया

सर्वस्व लूटा दिया तुम्हारे

लिए उसने


अब तुम ही बतलाओ तुमने

कितना स्नेह इन सबसे पाया है 

नर और नारी के भेद में

क्यों अब भी तुम पड़े हो

नया जमाना नई सदी है


क्यों विकृत मानसिकता में

जकड़े हो

कदम से कदम मिलाकर

कदम ताल करो तो

स्नेह को स्नेह देकर तुम

उसका सम्मान करो तो..



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