स्नेह के धागे
स्नेह के धागे
मन उलझा रहे सवालों में,
बिन मतलब की बातों में,
गफलत और ख़्यालों में,
रोती अवसाद की रातों में।
दिल को एक पल चैन नहीं,
मारा फिरता कहीं न कहीं,
बिखरी खुशियों को चलो समेटें,
आँचल में थोड़ी धूप लपेटें ।।
जीवन की कड़ी सलाई पर
स्नेह के थोड़े धागे बुन लें ।।
उम्मीदों से आँगन लीपें,
आशाओं के मोती सीचें।।
थोड़ी मन की बातें कर लें,
थोड़ी सी मुलाक़ातें कर लें,
ओस की इन निर्मल बूँदों से
दमक उठेगी जीवन बगिया।
खुशियाँ भरी हो जीवन में
तो हर दिन है त्योहार,
चिन्ताओं को भूल कर
हर गम को दें बिसार।
चाहे दशहरे का दिन हो
या हों रमजान की रातें,
भरे पड़े हैं हँसी खुशी से
और हजारों नाते ।।
अपनेपन की एक फुहार
काफ़ी है इन्हें जगाने को,
दिल को छोटी सी एड़ लगाएँ
थोड़े कदम बढ़ाने को।।