संदली मखमल की तरह
संदली मखमल की तरह
धँसता रहा मैं उम्र के पड़ाव में दलदल की तरह,
यूँ ही बीतती रही ज़िन्दगी कीचड़ में कमल की तरह।
मैं तो अपने लिए सुनता गया, लिखता गया,
लोग मुझे पढ़ते रहे, शगल की तरह, अमल की तरह।
गैरों ने मुझे थाम रखा है आसमाँ की तरह,
अपने मुझे पीते रहे दवा की तरह, गरल की तरह।
खुशबुएँ बिखरने लगी हैं अब मेरे चारों तरफ,
मेरी कलम होने लगी है संदली मखमल की तरह।
कहाँ फरियाद ले के जाओगे अपनी 'केसर' ?
कि सारा गाँव हो जब जंगली चम्बल की तरह।