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Taj Mohammad

Abstract

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Taj Mohammad

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वह जब भी मिलते हैं

वह जब भी मिलते हैं

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वह जब भी मिलते हैं मुझसे बात करते हैं अजनबियों की तरह।

अब तो वह लगते हैं मुझे किताबों में रखे सूखे फूलों की तरह।।1।।


न जाने कितने दौर आए जिंदगी में मौसमों की तरह।

फिर भी हम इन्तजार करते रहे उनका सड़क पर लगे पत्थरों की तरह।।2।।


बात होती है हमारी उनकी धूप में जैसे बारिशों की तरह।

मिलने के वक्त उनको जाना होता है शाम के परिंदों की तरह।।3।।


कितनी कोशिश करता हूं ना याद आए वह मुझें अपनों की तरह।

पर हर कोशिश बेकार होती है मेरी फिरऔन की तरह।।4।।


तबीब समझकर हमने जिंदगी दे दी उनको मरीजों की तरह।

फिर वह मुझे क्यों दिखता है कुछ-कुछ मेरें कातिलों की तरह।।5।।


बदनाम ना करेंगे हम तुमको तुम्हारे रकीबों की तरह।

क्योकि चाहा है हमने तुमको बडा शरीफों की तरह।।6।।


राजदार तुझको क्या बनाया मैनें अपनों की तरह।

मेरी बरबादी मे तुम भी शामिल हो गये मेरे दुश्मनों की तरह।।7।।



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