संभावनाओं के बीज
संभावनाओं के बीज
अपने हृदय के उपजाऊ भूमि पर
मैं करती रहती हूँ
असीम संभावनाओं की खेती
हर बेहतर आज और कल के लिए
उम्मीदों से करती हूँ जुताई
बुद्ध, गाँधी से लेती हूँ बीज
शांति, प्यार का करती हूँ बुवाई
आशाओं का बनाती हूँ मेढ़
कल्पनाओं से देती हूँ उष्णता
अनंत इच्छाएं बन बरसती हूँ
करुणा से उसे सींचती हूँ
आशंका, दु:स्वप्न, अनहोनी ......का
करती रहती हूँ निराई-गुराई
लहलहाती झूमती -गाती फसलों को
देख खुश होती रहती हूँ
कि कहीं पेट की आग से बचने को
कई जिंदगियां कर लेते हैं
स्वयं ही सामूहिक अंत
होने लगती है ऑनर किलिंग
कोई लिख जाता है..' आई क्वीट '
कहीं मनाई जाती है दीवालियाँ
तो कहीं खेली जाती है खून से होलियाँ
अतिवृष्टि, अनावृष्टि कर देते हैं
मेरे फसलों को बर्बाद ....
एकबारगी मेरा हृदय हो जाता है बंजर
और मैं फिर से जुट जाती हूँ
संभावनाओं के बीज की खोज में..
