Amrita Tanmay

Abstract Classics Fantasy

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Amrita Tanmay

Abstract Classics Fantasy

औचित्य

औचित्य

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खोजती रही मैं

अपने पादचिह्न

कभी आग पर चलते हुए

तो कभी पानी पर चलते हुए

खोजती रही मैं

अपनी प्रतिच्छाया


कभी रात के घुप्प अँधेरे में

तो कभी सिर पर खड़ी धूप में

खोजती रही मैं

अपना परिगमन -पथ

कभी जीवन के अयनवृतों में

तो कभी अभिशप्त चक्रव्यूहों में

खोजती रही मैं


अपनी अभिव्यक्ति

कभी निर्वाक निनादों में

तो कभी अवमर्दित उद्घोषों में

खोजती रही मैं

अपना अस्तित्व

कभी हाशिये पर कराहती आहों में

तो कभी कालचक्र के पिसते गवाहों में


हाँ ! खोज रही हूँ मैं

नियति और परिणति के बीच

अपने होने का औचित्य।


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