नियति और परिणति के बीच अपने होने का औचित्य। नियति और परिणति के बीच अपने होने का औचित्य।
विरोधाभासों के बिना कोई प्रगति नहीं है। विरोधाभासों के बिना कोई प्रगति नहीं है।
क्या इसी एक दिन, होती है माँ महान। क्या इसी एक दिन, होती है माँ महान।