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Aarti Sirsat

Tragedy

3  

Aarti Sirsat

Tragedy

समय

समय

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धीरे - धीरे यह समय सिखा रहा है....

इंसान को इंसान की औकात दिखा रहा है....

जितनी परेशानियां कुदरत को तुमनें दी थी....

एक - एक करके दर सहित लौटा रहा है....

लाशों का गोदाम बन गई है धरती माता....

नदियों का पानी भी शवों लियें बह रहा है.....

यह समय काल का दोषी नही....

वक्त तुम्हारे कर्मो का आईना दिखा रहा है....

बाजार में एक चीज का मोल अधिक बढ़ गया है....

सुना है आजकल साँसों का व्यापार चल रहा है....

हिम्मत- ताकत कहां गई हमारी एकता की....

क्यों टुकड़ों - टुकड़ों में परिवार बिखर रहा है....

कभी खामोश तो कभी चीखता है....

न जाने किस ओर यह समय लिये जा रहा है....

          


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