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Minal Aggarwal

Abstract

4  

Minal Aggarwal

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समुन्दर की कहानी

समुन्दर की कहानी

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समुन्दर 

शांत है

तो सुंदर है 

एक जहाज भी

उसके पानी के धरातल पर

तैरता है

जहाज में सवार

लोग भी

खुश हैं

समुन्दर की लहरों से

खेलते हैं

समुन्दर के घर में

रह रहे 

जलीय जीव जंतुओं से

मिलते हैं

इसके विशाल दर्पण में

खुद को देखकर

अपने अस्तित्व को भी

इस जैसा

महान बनाने की

कोशिश करने की

एक मछुआरे के जाल से

सपने बुनते हैं

सही सलामत

एक लंबा सफर तयकर

किनारे पहुंचते हैं

लेकिन यह कहानी

समुन्दर की

हमेशा एक सी नहीं

समुन्दर शांत न होकर

ले लेता है

कभी कभी

एक रौद्र रूप

उजागर कर देता है

वह भी अपने अंदर

दबी और छिपी

अदृश्य शक्तियां

और दिखा देता है

अपनी राक्षस प्रवृत्ति

न अपनी

न पानी में तैरते

जहाज की

न इसमें सवार 

मुसाफिरों की

न इसके 

खुद के घर में रह रहे

असहाय जीव जंतुओं की

न माझी की

न मछुआरों की

न मंजिल की

न किनारों की

न बस्तियों की

न प्रकृति के रखवालों की

किसी की चिन्ता नहीं

करता

रौंद देता है

दूर दूर फेंक देता है

डूबो देता है

अपनी लहरों के बड़े बड़े उछाल से सबको

अजगर सा मुंह

फाड़ता है और

निगल जाता है

सबको

पता नहीं

किसी बात पर

इतना रुष्ट हो जाता है

कि अपना ही घर

तोड़ देता है

सब कुछ तबाह कर

देता है

उजाड़ देता है

अपने नाम को

बदनाम करता है

खुद से बंधी

विश्वास की एक डोर

तोड़ता है

फिर समय के साथ 

शांत होकर

बैठ जाता है

ऐसे

जैसे कि इस मासूम ने तो

कभी कोई गुनाह किया ही

न हो।


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