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Kanchan Jharkhande

Abstract

5.0  

Kanchan Jharkhande

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स्मृति

स्मृति

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संसारमयी जीवन चक्र में

एक तथ्य अडिग है,

हर मंजर रंग रंजिस है।


केवल रह जाती है तो स्मृतियाँ

द्वी चक्र वाहन पर जब

मैं निकलती हूँ किस डगर पर

तुम्हें केवल क्षण भर सोचने से

खिल उठती है, मेरी वाहिकाएँ

सत्रहवीं तंत्रिकाएँ जो संकुचित हो

उत्पन्न करती है, क्रोध

वे भी खिलियाँ जाती है, प्रेरणा में

तुम उमंग बन मेरे जीवन को 

सदैव सींचते हो,

द्वी चक्र वाहन पर जब

गुदगुदाती हैं, हवाएं मार्मिक स्पर्श

वह स्पर्श हर क्षण तुम्हारे स्पर्श सा लगता हैं।


मुझे हल्का सा स्मृति है,

राह सुनसान सा था पर

तुम्हारे होने का एहसास 

सदैव मेरे साथ गुनगुनाता रहा

बादलों ने भी हया के घुंघट ओढ़ लिए 

प्रकृति भी त्रि रंगों सा श्रृंगार किये 

तुम्हें केवल क्षण भर सोचने से

स्मृतियों ने हज़ारो स्वप्न विस्तार कर लिये।


तुम्हें केवल क्षण भर सोचने से

कम्पन करते हैं, मेरे आलन्द-निलय

तीव्रता से गमन करने लगती है।


श्वास-

तुम्हें केवल क्षण भर सोचने से

उजागर है, मेरा जहान।


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