सम्मान
सम्मान
विनम्रता का
श्रृजन संस्कार
से होता है !
शिष्टाचार,
माधुर्यता,
शालीनता से
हमारा रूप
बनता है !
हमें कोई
देख पता
है नहीं
आज के इस
दौर में !
ढूंढते फिरते
मायूस होकर
आवाज भी
सुन नहीं लेते
शोर में !
बस आपकी
तस्वीर बेजुबां
कुछ हल्की
सी बयां
करती है !
आपका व्यक्तित्व
तो आपकी
लेखनी से
ही छलकती है !
श्रेष्ठ हों,
समतुल्य हों
या अनुज
मेरे लिए हों
छोटी हों !
या हो पुज्यनियाँ
कोई हमसे
जुड़ गयीं हों !
प्यार, सत्कार,
शिष्टता की
चाहत भला
किसको नहीं है ?
इसके बिना
पशु भी हमसे
जुड़ता नहीं है !
विनम्रता के
विभिन्य शब्दों
को सीखना होगा !
प्यार और सम्मान
सबको हमें
देना होगा !