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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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समझना है जरुरी

समझना है जरुरी

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बाल मनोवज्ञान समझना है जरूरी

मानसिक क्षमता का होता है कैसा

विकास जानना है जरूरी

बाल्यावस्था होती हैं बड़ी नाजुक

जैसे हो कोई गीले मिट्टी का घड़ा


चाहो जैसा आकार दो मनचाहा कड़ा

गुजरता है मानसिक तनाव से बचपन

प्यार में पलने दो यह लड़कपन

बचपन समझता है पर व्यक्त करता नहीं

नटखट होता है दुनियादारी समझता नहीं


बचपन में दो भावनात्मक जुड़ाव

और बुनो रिश्तों का तानाबाना

बच्चे होते है मन के सच्चे

पारदर्शक कांच की तरह

चाहे जैसा बना लो,


अच्छी बुरी आदतें डाल दो

जैसे संस्कार, जैसी परिस्थतियां

वैसे ही ढलता है बचपन

मारता है किलकारियां


उछलकूद करके लेता सिर पर घरआंगन

उसकी शरारतें भर देती है

जीवन में ऊर्जा

आनंद से उछलता है घर का कोना कोना

बचपन का मनोविज्ञान


बनाता है सुंदर, सुशील ,ईमानदार,

कर्तव्य निष्ठ भविष्य देश का

बचपन की भावनाएं, संवेंडनाए,

एहसास, रहती साथ जिंदगीभर

मानसिक क्षमता बढ़ाना है जरूरी


नहीं तो रहती हैं बचपन खुराक अधूरी

सक्षम होना मानसिक तौर पर

जरूरी है जितना शारीरिक तौर पर।


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