समझ
समझ
लगे न डोर पर जोर पर कोई अब
ये रिश्ता जो कैसा है?
हँसी से जुड़े हैं तब तक,
न तकरार हो जब तक।
बिन बुलाये आयेंगे मेहमान ,
जब घर की बात बाहर बताई जायेगी
मजा लेंगे लोग,
जब घर की इज्जत बाहर लुटाई जायेगी ।
तमाशा बनेगा तब,
जब सरेआम दिखाई जायेगी
कच्चा होगा धागा तो, बात न कोई बन पायेगा
अपने ही अपनों के नजरों में गिर जायेंगे
तकरार होगा ज्यादा जब ।
अरे तकरार से तकरार में न होगा समाधान कोई,
फीके पकवान से जुबां पे मिठास न होगा कोई ।
कच्चा होगा धागा तो, कच्चा ही रह जायेगा
छोटी सी बात का भी बतंगड़ बन जायेगा तब।
सरेआम लुटेगी इज्जत ,
जब घर का सिपाही ही बागी बन जायेगा
जनाजा न उठायेगा कोई
अपने ही गैर कह जायेंगे जब।
सोचोगे तब,
जब सब कुछ लूट जायेगा
पर होगा भी तब क्या?
लगा डोर पर जोर ज्यादा,
डोर ही तोड़ जायेगा तब ।
अब पछताकर होगा भी क्या?
जब डोर ही टूट जायेगा
गांठ देने पर भी रिश्ता न जुड़ पायेगा
होगी समझ तो संभल जाओगे,
वरना ज़्हुते अहम में बर्बाद हो जाओगे तब ।
