समाज की संस्कृति
समाज की संस्कृति
समाज की संस्कृति का अपना एक दायरा बना हैं।
जहां कार्यकारिणी बना कर सब अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते है एक पूरे परिवार की तरह..
अलग अलग सांस्कृतिक प्रोग्राम कर सबका मनोरंजन करते है। साथ साथ शिक्षा का भी मान रखते हैं.. हर एक की प्रगति का सम्मान करते हैं.. चाहे छोटे हो या बड़े सभी का बखान करते हैं। 70वी आने पर फूल हार पहना कर बड़े बुजुर्गो का मान –सम्मान रखते हैं। और किसी के जानें पर भी ढुख का भी अवसान करते हैं..
हर एक के सुख दुख में पूरे परिवार की तरह मिलनसार बन जाते हैं !
ऐसा हैं हमारा प्यारा समाज..
खुद को खुद के काबिल बनाया;
मन में जो आया वो लिख डाला;
देखो आज प्रेरणा पाकर
मैने अपना जीवन
सफल बनाया !
मुझे किसी ने रोका नहीं
मुझे किसी ने टोका नहीं
समाज के साथ लॉक डाउन में मैंने
अपना कवियत्री का खिताब पाया !
बढ–चड़कर मुझे बढ़ाईया मिली;
अपनो का विश्वास पाया !
साथ अपने जीवन
साथी का साथ पाया !
घर काम करते करते
मैने अपनी कविता का
जीवन में सार पाया !
छोटी छोटी बाते जो
जीवन से होकर गुजरती हैं;
उसी मे अपना नाम पाया !
कर गुजर कर गुजर
सपनों की मंज़िल से लड़ गुजर।
आगे बढ़ आगे बढ़
अपने पथ पर आगे बढ़।
साहस रख साहसी बन ..
अपने जज्बे को सलाम कर.
खुदा की इनायत
तुझ पर बरसेगी ए बंदे..
भूूत भविष्य में नहीं
वर्तमान पर तू नजर रख !
आगे पीछे मत देख;
अपनी मंज़िल पर नज़र रख;
एक दिन ऐसा आयेगा;
मंजिल को सामने पायेगा;
तब ये वक्त गुजर जायेगा;
मंज़िल को तू अपने आगे पायेगा !
हमेशा याद रख मंज़िल पाना आसान नहीं;
जो तुमने कष्ट और मेहनत करके पाए हैं !
मंज़िल पाकर अपनी अहमियत को न भूल जाना;
जो आज है उसमे अपने कल को ना भूल जाना।