समाचार पत्र
समाचार पत्र
पढ़कर समाचार पत्र
होता है मन, कितना बेचैन।
कहाँ है मानव का
वह सुखद सुख चैन।
हर दिन जलती है
बहू बेटी,घर के कमरे में।
बंद नहीं हो रहे दहेज
के लोभी ,जेल के कमरे में।
भंग हो रहा, नारी का शील
हो रहा रोज, चीर हरण।
दानव हो गया मानव
हो रहा उसका शील क्षरण।
नहीं है अब दिलों को
जोड़ने वाली बात।
फल फूल रहा,धोखा भ्रष्टाचार
यह मानवता पर कैसी घात।
डूबों रहे हैं राजनेता
देश को कर्ज ,की दलदल में।
आपना घर भर रहे सभी
जनता को छल रहे,रख अंधेरे में।
क्या यही सपना देखा था
बापू ने आजाद भारत का।
आजाद भगतसिंह और
बोस की शहाद
त का।
पूछ रहा देशभक्तों का लहू
कहाँ खो गया हिन्दुस्तानी।
आती नहीं जिसे शर्म कहते
यहाँ क्या रखा है जाॅनी।
स्वार्थ चापलूसी का है
सभी ओर नजारा।
प्रगति विकास और बेरोजगारी
रह गया सिर्फ नारा।
ऐसा नहीं होता तो क्या
समाचार के पन्ने बढ़ते।
मानवता के कारनामे
क्या रोज नहीं छपते।
सुबह समाचार पत्र पढ़कर
मन क्या आक्रोशित नहीं होता।
क्या कभी,कोई पढ़ा लिखा
कभी इसे है, पूरा पढ़ता।
किसने क्या किया था।
सही था या गलत
छोड़ आगे बढ़े आओ मिलकर
मानवता का श्रंगार करें।
करें देशभक्ति, जुड़ाव की बातें
अब समाचार पत्र तो जन पूरा पढ़ें।