सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
आज फिर से सीता की अग्नि परीक्षा की घड़ी है
एक और अबला फिर से पति के आगे लाचार खड़ी है
पहले तो परीक्षा लेने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे
आज तो परीक्षा लेनेवाले खुद ही पाप की लड़ी है
पहले तो रावण भी अकेला ही था
आज तो लाखों रावणों की भीड़ भरी पड़ी है
आज वो दहेज के लिये जलायी जाती है
आज भी सीता इंसाफ़ के लिये रो पड़ी है
आज उस पर लोग छीटाकशी करते हैं
बेवज़ह,फिजूल ही उस पर शक करते हैं
आज भी सीता परिवार में अकेली ही खड़ी है
पुरुष प्रधान समाज में
आज भी इनकी मांग बड़ी है
सीता आज भी इनके लिए बस एक चिड़ी है
कब तक तू सीता ये अग्निपरीक्षा देगी
कब तक तू इस पुरुष समाज से डरेगी
अब तो उठ खड़ी हो जा
तू दुर्गा है, तू रणचंडी है
अब तेरे आंसुओं की कीमत वसूलने की घड़ी है।
