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Sandeep Kumar

Tragedy

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Sandeep Kumar

Tragedy

सीता की अग्नि परीक्षा कब तक

सीता की अग्नि परीक्षा कब तक

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सीता की अग्नि परीक्षा

अब कब तक देखते रहोगे

इस कठिन समस्या का हल

संवैधानिक रूप से करोगे।


नेता मंत्री मस्ती में कब तक

सीता की कुर्बानी चढा़ओगे

सीता की लाज बचाने को

कोई संवैधानिक नियम बनाओगे।


मानवता का खून पी पी कर

क्या लोग लाज बचाओगे

हैवान मानव को सूली पर

कब तुम चढा़ओगे।


देखो जिस के श्री चरणों में

भगवान भी नरमस्तक होते है

उसका जीवन का मूल्य

कोई नहीं समझते हैं।


आज सीता खुद को विवश

खुद के नजरों में पाते हैं

हर मानव में अपने राम को

ढूंढते हरदम रहते हैं।


सीता माता के बच्चों में

लव कुश नहीं नजर आते हैं

इसीलिए आज मानवता

मानव धर्म निभा ना पाते हैं।


ना राम मर्यादा पुरुषोत्तम

ना दशरथ नजर आते हैं

वेद व्यास का पावन धरती

सीता को विवश पाते हैं।


जगत लोक से ब्रह्मलोक तक

सीता की महिमा गाते हैं

फिर भी इसकी सुरक्षा को ना

कठोर निर्णय कोई ले पाते हैं।


दीन में भी चलने को सीता

कहीं भी तो चल देते हैं

पर भेड़ बकरी गधा उसे

सुरक्षित घर न लौटने देते हैं।


ऐसे मानव हैं यहां के

जो न्याय को भी बेच देते हैं

सीता की सुरक्षा को कोई

आवाज बुलंद ना कर पाते हैं।


बेचारी अबला अबला ही

बन कर बला रह जाते हैं

पुरुष प्रधान इस लोक में

अपना गरिमा ढूंढते रहते हैं।


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