शून्य को शून्य रहने दो
शून्य को शून्य रहने दो
कोई आकर इश्क़ फरमाए
हमारी कभी कोई दिलचस्पी न थी
ना कभी दिल ने
दिल्लगी का कोई चिराग जलाया था
मगर जाने क्यों फिर भी
जिंदगी में किसी की कमी खल रही थी
किसकी कमी, कहाँ होगा
जो इक दिन आकर इस शून्य को भरेगा
कुछ भी मालुम नहीं था
सामने पहाड़-सी ज़िन्दगी खड़ी है
इसको भी समझना अभी बाक़ी था
आखिर मौत आने तक साथ इसके जो रहना है
जब भी दिल तनहा होता है
बार-बार एक ही सवाल करता है कि
कब तक यूँ ही तनहा रहेगा
ये सूनापन, ये खालीपन
देखना, एक दिन तुझे भस्म कर देंगे
लम्बी गहरी सांस लेते हुए कहा मैंने
तूने जो मशविरा दिया है ठीक है
मगर इश्क़ में फिलहाल
मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।
