श्रमिक
श्रमिक
तू पीड़ा जनमानस की,
कैसे वह सबको बतलाए
राह है देखें उनके आने की,
जाने कब से आस लगाए।
धैर्य छूट रहा अब तो उसका,
फ़िर भी वह मन को समझाए,
मन कहता अंतिम अवसर दे उनको,
शायद अब की बात बन जाये।
तू पीड़ा जनमानस की,
कैसे वह सबको बतलाए
राह है देखें उनके आने की,
जाने कब से आस लगाए।
धैर्य छूट रहा अब तो उसका,
फ़िर भी वह मन को समझाए,
मन कहता अंतिम अवसर दे उनको,
शायद अब की बात बन जाये।