SUMIT GUPTA
Tragedy
तू पीड़ा जनमानस की,
कैसे वह सबको बतलाए
राह है देखें उनके आने की,
जाने कब से आस लगाए।
धैर्य छूट रहा अब तो उसका,
फ़िर भी वह मन को समझाए,
मन कहता अंतिम अवसर दे उनको,
शायद अब की बात बन जाये।
श्रमिक
मानसिक आजादी
वीर योद्दा...
कोई कुल्हाड़ी जब पेड़ को काटती है पेड़ की डाली कुल्हाड़ी को डांटती है, कोई कुल्हाड़ी जब पेड़ को काटती है पेड़ की डाली कुल्हाड़ी को डांटती है,
हम नदी से पानी नहीं मिठास माँगेंगे। हम नदी से पानी नहीं मिठास माँगेंगे।
तब मैं मैं न था सूखा बादल सूखा पत्ता बंजर हो गया तब मैं मैं न था सूखा बादल सूखा पत्ता बंजर हो गया
क्यूँ चैन के दो पल बिखरे घर से जीत नहीं पाते क्यूँ हम दोनो एक दूजे में दुनिया को क्यूँ चैन के दो पल बिखरे घर से जीत नहीं पाते क्यूँ हम दोनो एक दूजे में ...
वर्तमान की तो किसी को पड़ी ही नहीं फिर भविष्य का नजरिया कैसे आएगा? वर्तमान की तो किसी को पड़ी ही नहीं फिर भविष्य का नजरिया कैसे आएगा?
जीवन में खुशियों का साया होता, और रिश्तों में मर्यादा होती, काश! उस रात ना हाथ उठाया जीवन में खुशियों का साया होता, और रिश्तों में मर्यादा होती, काश! उस रात ना...
उम्मीद हमारी हमारे अपनों ने इस कदर तोड़ी है; हमने पूरी दुनिया से ही उम्मीद छोड़ी है। आफताब वह हम... उम्मीद हमारी हमारे अपनों ने इस कदर तोड़ी है; हमने पूरी दुनिया से ही उम्मीद छोड़...
फैसलों की तथाकथित किरण जिनका रोज गला घोंटती है फैसलों की तथाकथित किरण जिनका रोज गला घोंटती है
कविता ,लेख साहित्य की चर्चा भला इस परिवेश में होगा कहाँ ? कविता ,लेख साहित्य की चर्चा भला इस परिवेश में होगा कहाँ ?
धूप खूब तेज़ थी, चेहरे पर था मेरे नक़ाब वो रोक ही नहीं पाया जो चेहरे पर आया मेरे तेज़ाब धूप खूब तेज़ थी, चेहरे पर था मेरे नक़ाब वो रोक ही नहीं पाया जो चेहरे पर आया मेर...
किसान को पता है केंचुए की कुदाल से कट जाने की छटपटाहट। किसान को पता है केंचुए की कुदाल से कट जाने की छटपटाहट।
उम्मीद टूटी, भ्रम झूठा, हार गया हर जत्न। मानवता पर अभिशाप यह, विस्मृत हुआ कर्तव्य। उम्मीद टूटी, भ्रम झूठा, हार गया हर जत्न। मानवता पर अभिशाप यह, विस्मृ...
बिना शोर किए वो खिड़कियां बंद हो जाती हैं जैसे इस शहर में कुछ हुआ ही न हो बिना शोर किए वो खिड़कियां बंद हो जाती हैं जैसे इस शहर में कुछ हुआ ही न ह...
इनमें, मैंने ब्रह्मांड के साथ साथ, अपने वजूद को भी खत्म होते देखा है... इनमें, मैंने ब्रह्मांड के साथ साथ, अपने वजूद को भी खत्म होते देखा है...
तृप्त करने और विरोध करने पर जिंदा जला देने के लिए। तृप्त करने और विरोध करने पर जिंदा जला देने के लिए।
क्यों खो गये क्यों खो गये
इतनी निर्दयता हाय,कहाँ से हो पाती, प्रकृति खड़ी है मौन,क्यों नहीं रो पाती, इतनी निर्दयता हाय,कहाँ से हो पाती, प्रकृति खड़ी है मौन,क्यों नहीं रो पाती,
पिघल रहे विशाल हिमखंड, बढ़ रहा प्रदूषण, सब तुम्हारे चिन्ता का विषय है। पिघल रहे विशाल हिमखंड, बढ़ रहा प्रदूषण, सब तुम्हारे चिन्ता का विषय है।
घर आंगन छोड़ कर कहां उड़ गई गौरैया रानी। घर आंगन छोड़ कर कहां उड़ गई गौरैया रानी।
रौंद रही है मृत्यु चरण से काँप उठा यह विश्व मरण से। रौंद रही है मृत्यु चरण से काँप उठा यह विश्व मरण से।