श्रीमद्भागवत - नर्क की विभिन्न विभिन्न गतिओं का वर्णन - भाग 2
श्रीमद्भागवत - नर्क की विभिन्न विभिन्न गतिओं का वर्णन - भाग 2
जो व्यक्ति चोरी बरजोरी से
स्वर्ण, रत्नादि का हरण है करता
ब्राह्मण या किसी दुसरे पुरुष का
सन्दंश नर्क में वो है पड़ता।
वहां तपाये हुए लोहे के गोलों से
यमदूत उसको हैं दागते
कष्ट देने के लिए उसको
उसकी वहां वो खाल नोचते।
सम्भोग करे अगम्या स्त्री से
यदि कोई पुरुष इस लोक में
या व्यभचार करे कोई स्त्री
किसी अगम्या पुरुष के साथ में।
तपतसूर्मि नरक में ले जाकर
यमदूत कोड़ों से पीटते उन्हें
आलिंगन करवातें हैं उनका
तपाये लोहे की मूर्ती से।
इस लोक में जो पुरुष
पशुआदी के साथ व्यभचार है करता
यमदूत ले जाते उसको और वो
वज्रकण्टक शलमीली नर्क में गिरता।
सेमर के वृक्ष पर उसे चढ़ाते
वज्र के समान हैं कांटे जिसके
कठोर कांटे जब उसको चुभते
नीचे से फिर उसे खींचते।
राजा या राजपुरुष जो
जन्म पाकर भी श्रेष्ठ कुल में
धर्म, मर्यादा का उलंघन करते
पटके जाते वैतरणी नदी में।
मल, मूत्र, पीव, रक्त से भरी हुई
नरकों की खाई के समान ये
हड्डी, चर्बी, मांसादि भी इसमें
भरी इन्ही गन्दी चीजों से।
वहां गिरने पर इस जगह में
जल के जीव नोचते हैं उन्हें
किन्तु ये शरीर जो है
उनका छूटता नहीं है इससे।
पाप के कारण प्राण उन्हें
वहन किये रहते हैं और वो
कर्म का फल समझ इस दुर्गति को
मन ही मन संतप्त हैं रहते।
शौच और आचार के नियमों का
जो लोग परित्याग करते हैं
लज्जा को तिलांजलि देकर
पशुओं समान आचरण करते हैं।
मरने के बाद वो पुरुष
गिरते समुन्द्र में पूयोद नाम के
पीव, विष्ठा, मल - मूत्र से भरा ये
इन वस्तुओं को ही वो खाते।
जो ब्राह्मणादि वर्ण के लोग हैं
पालते हैं कुत्ते या गधे को
शिकारादि में लगे रहते हैं
पशुओं का वध करें विपरीत शास्त्रों के।
मरने के बाद डाले जाते हैं
वो सब प्राणरोध नर्क में
यमदूत वहां उन्हें लक्ष्य बनाकर
वाणों से हैं बींधते।
पाखंडपूर्ण यज्ञों से पशुओं का
वध करते हैं पाखंडी जो
पीड़ा देकर काटा जाता है
वैश्स नर्क में डालकर उनको।
जो मनुष्य भार्या को अपनी
कामातुर हो वीर्यपान कराते
डालकर लालभक्ष नर्क में
यमदूत उन्हें वीर्य पिलाते।
चोर, राजा या राजपुरुष
किसी के घर में आग लगाता
किसी को वो विष देता है
व्यापारिओं को या लूट ले जाता।
मरने के पश्चात उसे हैं
सारमेयादन नर्क में डालते
वज्र की सी दाढ़ों वाले यमदूत फिर
कुत्ते बनकर उसे काटते।
इस लोक में जो पुरुष
झूठ बोलता गवाही देने में
और कोई जो झूठ है बोले
व्यापार में अथवा दान के समय।
आधारशून्य अवीचिमान नर्क में
मरने के बाद वो जाता
सौ योजन ऊँचे पहाड़ से
नीचे सिर करके गिराया जाता।
पत्थर की भूमि उस नर्क की
जान पड़ती जल के समान है
इसीलिए उस नर्क का
अवीचिमान पड़ा नाम है।
ऊपर से गिरने पर शरीर के
टुकड़े होने पर प्राण न निकलें
बार बार ऊपर ले जाकर
नीचे पटका जाता इसलिए।
जो ब्राह्मण या कोई ब्राह्मणी
या प्रमादवश व्रत में स्थित और कोई
मद्यपान करता है तथा
क्षत्रिय, वैश्य करे सोमपान कोई।
अय:पात नामक नर्क में
यमदूत हैं उसको ले जाते
छातीपर पैर रखकर मुँह में
आग से गलाया हुआ लोहा डालते।
निम्न श्रेणी का होकर भी
अपने को बड़ा मानने से
बड़ों का विशेष सत्कार नहीं करता
जो बड़े जन्म, विद्या, आचार में उससे।
मरने के बाद ले जाते हैं उसे
क्षारकर्दम नामक नर्क में
नीचे को सिर कर गिराया जाता
भोगनी पड़तीं पीड़ाएं वहां उसे।
नरमेघादि द्वारा यजन करे जो
भैरव, यक्ष, राक्षसादि का
और स्त्रियां जो भक्षण करें
पशुओं के समान पुरुषों का।
पशुओं की तरह मारे हुए पुरुष तब
यमलोक में राक्षस बनकर
रक्षोगणभोजन नामक नर्क में
लहू पीते उनका, कुल्हाड़ी से काटकर।
वन या गांव के निरपराध जीवों को
जो फुसलाकर बुलाते पास हैं
और फिर कांटे से बेंधकर
रस्सी से बाँध खिलवाड़ करते हैं।
शूलप्रोत नामक नर्क ले जाकर
बींधा जाता है उसे शूलों में
और उसे हैं नोचने लगते
कंक, बटेर आदि पक्षी ये।
सर्पों के समान उग्र स्वाभाव पुरुष
दुसरे जीवों को पीड़ा पहुंचता जो
दंदशूक नर्क में गिरता
मरने के बाद पुरुष वो।
पांच, पांच, सात, सात मुँह वाले
सर्प उसके पास वहां आते
चूहे के समान ही उसको
मुँह में लेकर निगल हैं जाते।
जो व्यक्ति दुसरे प्राणीओं को
अँधेरी गुफाओं में डालते
परलोक में वैसे ही स्थानों में डालकर
यमदूत विषैले धुएं में घोंटते।
अवटनिरोधन नर्क नाम है
इसीलिए इस नर्क का
उस पुरुष को बडा कष्ट होता है
धुएं से जब दम है घुटता।
जो गृहस्थ अपने अतिथि को
देखता है भरकर क्रोध में
गिद्ध, कंक आदि नेत्र निकल लें
पर्यावर्त्तन नर्क में उसके।
अपने को बड़ा धनवान समझकर
टेढ़ी नजर से देखता है जो
धन की चिंता वो करता
सभी पर संदेह रखता है वो।
तनिक भी चैन न मानकर
धन की रक्षा में ही लगा रहता
वह नराधम मरने पर फिर
सूचीमुख नर्क में है गिर जाता।
वहां उस अर्थपिशाच पापात्मा के
सीते हैं सारे अंगों को
दर्जीयों के समान सुई धागे से
वहां के यमदूत हैं जो।
शुकदेव जी कहें हे राजन
सैंकड़ों, हजारों नर्क यमलोक में
बारी बारी वहां आते हैं
जीव, अनुसार अपने कर्मों के।
इसी प्रकार धर्मात्मा पुरुष भी
स्वर्गादि में वो जाते हैं
नर्क, स्वर्ग में रहकर फिर
इसी लोक में लौट आते हैं।
नर्क और स्वर्ग के भोग में
अधिकांश पाप पुण्य क्षीण हों
बचे हुए पाप पुण्य कर्मों को
लेकर फिर जन्म लेते वो।
ये पृथ्वी, द्वीप, पर्वत, आकाश
दिशा, नर्क लोकों की स्थिति जो
यही भगवन का स्थूल रूप है
समस्त जीव समुदाय का आश्रय वो।
भगवान के स्थूल और सूक्ष्मरूप जो
दोनों का श्रवण करे वो
चित को स्थूल रूप में स्थित कर
धीरे धीरे लगाए सूक्ष्म में वो।