STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -८८; राजा नाभि का चरित्र

श्रीमद्भागवत -८८; राजा नाभि का चरित्र

1 min
477


शुकदेव जी कहें, हे राजन 

नाभि के संतान न थी कोई 

पुत्र के लिए यज्ञपुरुष का यजन किया 

भार्या सहित आराधना की उनकी। 


भार्या मेरुदेवी और उनकी 

आराधना से प्रभु संतुष्ट हुए 

और यज्ञशाला में आकर 

मूर्ति रूप में प्रकट हो गए। 


सर झुका नाभि ने पूजा की 

स्तुति की ऋत्विजों ने उनकी 

कहें आप साक्षात् परमेश्वर 

उपासना हम सब करें आपकी। 


आप प्रकट हुए यज्ञशाला में 

सबसे बड़ा वर हमें दे दिया 

और वर मांगे क्या आपसे 

बस एक छोटी सी प्रार्थना। 


यजमान हमारे राजर्षि नाभि 

आपके समान पुत्र के लिए 

आपकी आराधना कर रहे हैं 

मनोकामना पूरी कीजिये। 


>शुकदेव जी कहें, हे राजन 

ऋत्विजों की स्तुति सुनकर ये 

करुणावश उन्हें इस प्रकार कहा 

देवश्रेष्ठ श्री हरी ने। 


बड़े असमंजस की बात है 

महात्मा आप सब सत्यवान हो 

दुर्लभ वर माँगा है आपने 

कि पुत्र नाभि का, मेरे समान हो। 


मेरे समान तो सिर्फ मैं ही हूँ 

क्योंकि अद्वित्य हूँ मैं तो 

नाभि के यहाँ अवतार लूं ताकि 

वचन तुम्हारा मिथ्या न हो। 


शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित 

मेरुदेवी के सुनते हुए 

इस प्रकार नाभि से कहकर 

प्रभु तब अंतर्ध्यान हो गए। 


नाभि का प्रिय करने के लिए 

मेरुदेवी के गर्भ से 

धर्म प्रकट करने मुनियों के 

श्री हरी फिर प्रकट हो गए। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics