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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -५०;प्रकृति पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन

श्रीमद्भागवत -५०;प्रकृति पुरुष के विवेक से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन

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कपिल जी कहें कि हे माता जी 

आत्मा निर्गुण, निर्विकार है 

शरीर में स्थित रहने पर भी उसका 

सुख दुःख आदि से ना सरोकार है ।


किन्तु जब वो प्राकृत गुणों से 

सम्बंध अपना स्थापित कर लेता 

तब अंधकार से मोहित होकर ‘

मैं करता हूँ ‘ ये मानने लगता ।


उसी अभिमान के कारण ही

 देह के किए हुए पुण्य - पाप से

 अपनी स्वाधीनता खो देता

वो घूमता रहता वो योनियों में ।


अविद्यावश विषयों का चिंतन

करने से संसार चक्र से ना निवृत

हो बुद्धिमान को ये उचित है 

भक्तियोग से वश में करे चित को ।


योगसाधना द्वारा चित को 

एकाग्र कर मेरी कथा श्रवण करे 

सब प्रणीयों से समभाव रखे वो 

किसी से वो कभी वैर ना करे ।


ब्रह्मचर्य व्रत आदि धर्म से 

ऐसी स्थिति प्राप्त वो करे 

प्रारब्ध के अनुसार जो भी

मिले उसी में संतुष्ट वो रहे ।


परमात्मा के सिवा और किसी को 

या वस्तु को भी नहीं देखता 

परमात्मा का साक्षात कर 

ब्रह्मपद को प्राप्त हो जाता ।


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