श्रीमद्भागवत - २२ - कामनाओं अनुसार विभिन्न देवताओं की उपासना
श्रीमद्भागवत - २२ - कामनाओं अनुसार विभिन्न देवताओं की उपासना
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
इच्छा हो अगर ब्रह्मतेज की
बृहस्पति की उपासना करे वो
विशेष शक्ति इन्द्रियों की चाहिए
इंद्र की पूजा करे वो|
संतान की लालसा के लिए
प्रजापतियों की उपासना
माया देवी की पूजा करे
जिसको लक्ष्मी की वासना|
तेज चाहिए जिसे, वो अग्नि की
वसुओं की, धन चाहिए जिसे
और जिसे वीरता की चाह हो
रुद्रों की वो उपासना करे|
जिसे चाहिए बहुत अन्न
अदिति की वो पूजा करे
और जिसे स्वर्ग की चाह हो
देवताओं की वो उपासना करे|
विशवदेवी का ध्यान करे वो
अभिलाषा हो जिसे राज्य की
प्रजा को अनुकूल बनाने के लिए
आराधना साध्य देवताओं की|
आयु की इच्छा करता जो
उसे देते हैं, अश्वनी कुमार जी
प्रतिष्ठा की इच्छा हो अगर
आराधना पृथ्वी और आकाश की|
सौंदर्य की चाह अगर है
गंधर्वों की आराधना करो तुम
पत्नी प्राप्ति के लिए
उर्वशी की उपासना करो तुम|
सबके स्वामी अगर बनना चाहो
ब्रह्मा की आराधना करनी चाहिए
यश की इच्छा हो अगर तो
यज्ञपुरुष को भजना चाहिए|
खजाने के लिए वरुण की और
विद्या प्राप्ति के लिए शंकर की
पति-पत्नी में प्रेम की लिए
उपासना करो तुम पार्वती की|
धर्म उपर्जन के लिए तुम
करो, विष्णु जी की पूजा
पितरों की तुम करो उपासना
करने वंश परंपरा की रक्षा|
यक्षों की तुम करो आराधना
बाधाओं से बचने के लिए
बलवान अगर तुम होना चाहो
मरुद्गणों को भजना चाहिए|
राज्य के लिए आराधना करो
मन्वन्तरों के अधिपति देवों की
चन्द्रमाँ की पूजा करो तुम
अगर प्राप्ति करनी भोगों की|
निष्कामना प्राप्त करनी है
नारायण को भजना चाहिए
और जो बुद्धिमान पुरुष हैं
उन्हें कृष्ण के रंग में रंगना चाहिए|
शुकदेव की कथा सुन, परीक्षित जी ने
ममता त्यागी एक क्षण में
मोह माया को था त्याग दिया
कृष्ण बसा लिए अपने मन में|
शुकदेव जी से फिर पूछें परीक्षित
भगवान कैसे सृष्टि रचना करें
कैसे वो करें उसका पालन
कैसे फिर उसका संहार करें|
सुनकर प्रश्न परीक्षित का फिर
शुकदेव जी कहें, कर स्मरण कृष्ण का
उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के लिए
रूप धरें, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का|
भगवान स्वयं तो अनंत हैं
और अनंत उनकी महिमा भी
प्रश्नों का उत्तर दें शुकदेव जी
पहले करें वो स्तुति कृष्ण की|
जो तुने पुछा है मुझसे
नारद ने ब्रह्मा से यही प्रश्न किया था
नारायण ने जो उपदेश दिया ब्रह्मा को
उन्होंने नारद को वही कहा था|