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Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

4  

Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

मेरी सोच...

मेरी सोच...

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चुराया वो करते हैं

जिनके खुदकी औकाद नहीं होती,

ताकतें ही रहेते है

अरमान कभी पुरे नहीं होती।


छुपाया वो करते है

जिनको ज़माने से डर लगती,

छुपाने से भी वो

कभी ज़माने से नहीं छुपती।


वो सोच क्या है

जिसमे अपनी सोच नहीं होती,

सजाना फिर कैसी है

जिसमे सिर्फ बनावटी ही दिखती।


दिखाना भी तो है

तो खुदकी नाम नहीं बिकती,

सोच की बाजार है

यहाँ किसकी सोच नहीं मीटती।


अगर कुछ करना है

और खुदपे यक़ी नहीं होती,

दुशरों की चुराते है

पर वो उनकी नहीं होती।


इसमें सोचना क्या है

उनकी सोच बहुत गन्धि होती,

तुम जो चुराए है

लाख कोशिसे, छुपा नहीं सकती।


क्या क्या चुराना है

सदा यहाँ कुछ नहीं टिकती,

खुद कभी सोचा है

जिससे चुराया, उसपर क्या बीती?


अगर ये सोच है

फिर तुम्हे डर कियूँ सताती ?

कितनी और चुराना है

मेरी सोच कभी नहीं मरती।


चुराओ, तुम्हे चुराना है

इसमें मुझे फरक नहीं पडती,

मुझे और सोचना है

मेरी सोच मुझे यही कहती।


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