कविता
कविता
सुबह कहूं, या शाम कहूं,
देव कहूं या आम कहूं,
जीवन का अपने सार कहूं,
या जीवन से ही पार कहूं,
राम कहूं या श्याम कहूं,
या विष्णु के अवतार कहूं,
पाप कहूं या पुण्य कहूं,
या अनंत में फैला शून्य कहूं,
इशु की वो बली कहूं,
या जन्म प्रदाता अली कहूं,
बली कहूं या छली कहूं,
या कलयुग का बस कलि कहूं,
अंग कहूं या भंग कहूं,
या महाकाल त्रिभंग कहूं,
शुरू कहूं, या अंत कहूं,
या बस तुम्हें अनंत कहूं,
धरा कहूं , आकाश कहूं,
या इसमें फैला प्रकाश कहूं,
हे ईश्वर में जो भी कहूं,
बस आपके चरणों का दास रहूं।
