STORYMIRROR

Suresh Kulkarni

Classics

4  

Suresh Kulkarni

Classics

शमा

शमा

1 min
469

रंज था रंग नहीं जम रहा इस महफिल में

उनके आनेसे हो गयी है रंगीन ये महफिल


इश्क क्या चीज है समझ गया हूॅं अब मैं

ताजगी रोशनी जो भरी यकायक महफिल में


इनके सिवा ये महफिल थी क्याॅं रोशनी कहाॅं

यही तो है शमा जो जलती है परवाने के लिये।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics