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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२१४; कालिय की कालियदाह में आने की कथा तथा भगवान् का व्रजवासीयों को दावानल से बचाना

श्रीमद्भागवत -२१४; कालिय की कालियदाह में आने की कथा तथा भगवान् का व्रजवासीयों को दावानल से बचाना

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राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन 

क्यों छोड़ा था कालियनाग ने 

नागों के निवासस्थान रमणक द्वीप को 

क्या अपराध किया गरुड़ का उन्होंने।


श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित 

पूर्वकाल में सब सर्पों ने 

यह नियम बना दिया था कि 

गरुड़ को प्रत्येक मास में।


निर्दिष्ट वृक्ष के नीचे 

एक सर्प की भेंट दी जाये 

नियम के अनुसार ही अमावस्य को 

सब सर्प अपना भाग देते थे।


गरुड़ की माता विनता जी 

और सर्पों की माता कद्रू में 

परस्पर वैर रहता था इसलिए 

वैर को माता के स्मरण करके।


गरुड़ जी जो भी सर्प मिलता था 

उसको वो खा जाते थे 

सब सर्प व्याकुल होकर फिर 

ब्रह्मा जी की शरण में गए।


ब्रह्मा जी ने यह नियम कर दिया 

कि प्रत्येक अमावस्य को 

प्रत्येक सर्प परिवार बारी बारी से 

एक सर्प की बलि देगा गरुड़ को।


उन सर्पों में कद्रू का पुत्र 

कालियनाग भी था जो बहुत बली था 

अपने विष और बल के कारण 

वो बहुत मतवाला हो रहा।


गरुड़ का तिरस्कार करता वो 

स्वयं की बलि देना तो दूर रहा 

दूसरे सांप जो बलि देते थे 

उनको भी वो खा जाता था।


यह देख भगवान के पार्षद 

गरुड़ जी उसपर कुपित हो गए 

वेग से टूट पड़े वो 

कालिय नाग को मारने के लिए।


एक सौ एक फन फैलाकर 

कालिय भी उनपर टूट पड़ा 

दांतों से गरुड़ को डँस लिया 

परन्तु अतुलनीय प्रभाव गरुड़ का।


क्रोध में आकर अपने पंख से 

कालिय नाग पर प्रहार कर दिया 

घायल हुआ कालियनाग भागकर 

यमुना के इस कुण्ड में आ गया।


यमुना जी का कुण्ड ये 

अगम्य था गरुड़ जी के लिए 

तपस्वी सौभरि के मना करने पर भी 

इसी स्थान पर एक दिन गरुड़ ने।


अपने अभीष्ट मत्सय को उन्होंने 

बलपूर्वक खा लिया था 

और मत्स्य राज के मर जाने पर 

मछलियों को बड़ा कष्ट हुआ।


अत्यधिक व्याकुल हो गयीं वे 

और यह दशा देखकर उनकी 

दया आई सौभरि मुनि को 

शाप दिया गरुड़ जी को तभी।


‘ यदि गरुड़ फिर कभी इस कुंड में 

घुसकर मछलियों को खायेगा 

मृत्यु होगी उसकी उसी समय ‘

कालिय को पता था इस शाप का।


इसलिए गरुड़ के भय से 

वो वहां रहने लगा था 

भगवान ने निर्भीक करके उसे 

वहां से रमणक द्वीप भेज दिया।


भगवान कृष्ण आभूषणों से विभूषित हो 

बाहर निकले थे उस कुण्ड से 

यशोदा, रोहिणी, नंदबाबा, गोप सब 

कृष्ण को पाकर सचेत हो गए।


बलराम जी तो पहले से ही 

प्रभाव जानते थे कृष्ण का 

कृष्ण को हृदय से लगाकर 

हंसने लगे देख उनकी लीला।


आनन्द में भरकर नंदबाबा ने 

सोना, गायें दीं थीं ब्राह्मणों को 

व्रजवासी थक गए थे तब तक 

सो गए यमुना के तट पर वो।


आग लग गयी थी अचानक 

आधी रात के समय उस वन में 

चारों और से घेर लिया था 

व्रजवासियों को उस आग ने।


कृष्ण की शरण में गए सभी 

और जब भगवान ने देखा कि 

मेरे स्वजन व्याकुल हो रहे 

भयंकर आग को तब पी गए वे।



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