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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -१६६; वामन अवतार का प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना

श्रीमद्भागवत -१६६; वामन अवतार का प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना

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श्रीमद्भागवत -१६६; वामन अवतार का

प्रकट होकर राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना 


श्री शुकदेव जी कहें हे परीक्षित 

ब्रह्मा जी के स्तुति करने पर 

अदिति के सामने प्रकट हुए 

भगवान् सब आयुध धारण कर। 


अन्धकार नष्ट हो गया घर का 

भगवान् की अंग कान्ति से 

जिस समय भगवान् ने जन्म ग्रहण किया 

चन्द्रमाँ श्रवण नक्षत्र में थे। 


भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की 

श्रवण नक्षत्र वाली द्वादशी थी तब 

और अभिजीत मुहूरत था 

भगवान् का जन्म हुआ था जब। 


जन्म हुआ था जिस तिथि को 

विजय द्वादशी कहते हैं उसे 

अदिति अत्यंत आश्चर्यचकित हुई 

भगवान् प्रकट जब उनके गर्भ से। 


कश्यप जी भी विस्मित हो गए 

जय हो, जय हो, कहने लगे वे 

वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण किया 

कश्यप और अदिति के देखते देखते। 


ऋषिओं को बहुत आनन्द हुआ देख 

हरि को ब्रह्मचारी के रूप में 

उपनयन संस्कार में, सविता ने 

गायत्री का उपदेश दिया उन्हें। 


बृहस्पति जी ने यज्ञोपवीत दिया 

मेखला दी थी कश्यप जी ने 

कृष्ण मृगचर्म पृथ्वी ने दी थी 

चन्द्रमाँ ने दण्ड दिया उन्हें। 


माता अदिति ने कोपान, कटी वस्त्र 

अभिमानी देवता ने छत्र दिया 

ब्रह्मा जी ने कमंडलु 

सप्तऋषिओं ने कुश उन्हें दिया। 


सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला 

भिक्षापात्र उन्हें दिया कुबेर ने 

और उन्हें भिक्षा दी थी 

स्वयं भगवती उमा ने। 


इस तरह सम्मान पाकर सब 

सभा में ब्रह्मऋषिओं से भरी 

अपने तेज से शोभायमान हुए 

वटुवेषधारी भगवान् हरि। 


पूजा हवन किया फिर उन्होंने 

और सुना कि यशश्वी राजा बलि 

अशव्मेघ यज्ञ कर रहे हैं 

तब वहां के लिए यात्रा की। 


भगवान् सब शक्तिओं से युक्त हैं 

इसलिए चलने के समय उनके 

झुकने लग गयी थी पृथ्वी 

पग पग पर उनके भार से। 


सुंदर स्थान भृगुकच्छ नामक एक 

है ये नर्मदा नदी के तट पर 

भृगुवंशी ऋत्विज बलि से 

यज्ञ करवा रहे वहीँ पर। 


दूर से देख वामनभगवान को 

जान पड़ा सूर्य देव हों जैसे 

ऋत्विज, यजमान, सदस्य जो वहां 

उनके तेज से निस्तेज हो गए। 


शुक्राचार्य आदि सोच रहे कि 

सूर्य, अग्नि अथवा सनत्कुमार ये 

उसी समय यज्ञ मंडप में 

प्रवेश किया वामन भगवान् ने। 


हाथ में छत्र, दण्ड लिए हुए 

और कमंडलु जल से भरा 

गले में यज्ञोपवीत धारण किये 

कमर में मूंजे की मेखला। 


बगल में उनके मृगचर्म था 

और जटा थी सिर पर उनके 

यज्ञ मंडप में आये वो, तो वहां 

भृगुवंशी उनसे प्रभावित हो गए। 


सब के सब उठ खड़े हुए 

सत्कार किया वामनभगवान का 

छोटे छोटे अंग बड़े मनोरम 

अतुल्य थी उनकी ये शोभा। 


आनन्द हुआ उन्हें देख बलि को 

उन्होंने भगवान् को उत्तम आसान दिया 

पांव पखारे और पूजा की 

चरणधोवन को मस्तक पर रखा। 


परम मंगलमय चरणधोवन ये 

प्राप्त हुई जो राजा बलि को 

बलि बोले, हे ब्राह्मणकुमार 

करूं मैं नमस्कार आपको। 


आज्ञा दीजिये, क्या सेवा करूँ 

घर पधारे जो आप हैं मेरे 

मेरा घर पवित्र हो गया 

मेरे पितर तृप्त हो गए। 


आपके पांव पखारने से ही 

सफल हुआ मेरा यज्ञ ये 

मेरे सरे पाप धूल गए 

बस दर्शन से ही आपके। 


परम पूज्य ब्रह्मचारी जी 

गाय, सोना, घर, गांव, संपत्ति जो 

आप मुझसे मांग लीजिये 

चाहिए जो कुछ भी आपको। 


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