Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -१४२; प्रह्लाद जी द्वारा नृसिंह भगवान की स्तुति

श्रीमद्भागवत -१४२; प्रह्लाद जी द्वारा नृसिंह भगवान की स्तुति

4 mins
1.2K


नारद जी कहें, कि जब इस तरह 

ब्रह्मा, शंकरादि देवगन सभी 

 नृसिंह भगवान् का क्रोध शांत न कर सके 

 न जा सके वो उनके पास भी। 


और छोर न दिखा नृसिंह जी का 

तब चिंता हुई देवताओं को 

उनको शांत करने के लिए 

भेजा स्वयं लक्ष्मी जी को।


अद्भुत रूप देख नृसिंह जी का 

लक्ष्मी जी भी बहुत विस्मित हुईं 

ऐसा पहले कभी रूप न देखा 

भयवश पास वो जा न सकीं।


तब ब्रह्मा जी ने पास खड़े हुए 

प्रह्लाद जी से कहा, बेटा सुनो 

प्रभु कुपित हुए तुम्हारे पिता पर 

तुम्ही जाकर अब उन्हें शांत करो।


प्रह्लाद जी ' जो आज्ञा ' कहकर फिर 

भगवान के पास गए, प्रणाम किया 

पृथ्वीपर शाष्टांग लेट गए 

मन में प्रभु का ध्यान किया।


भगवान् देखें, नन्हा सा बालक 

मेरे चरणों में है पड़ा हुआ 

ह्रदय दया से भर गया उनका 

सर पर उसके करकमल रख दिया।


कर कमलों का स्पर्श होते ही 

अशुभ संस्कार सभी मिट गए 

परमात्मा तत्व का साक्षात्कार हुआ 

प्रेम आनंद में मगन हो गए।


भगवान के चरणकमलों को प्रह्लाद ने 

धारण किया अपने ह्रदय में 

नेत्रों में अश्रुधारा थी 

स्तुति की तब प्रभु की उन्होंने।


प्रह्लाद कहें, ब्रह्मादि देवता 

ऋषि, मुनि, सिद्ध पुरुषों की 

सत्वगुण में ही स्थिर रहे 

उन सब लोगों की सदा बुद्धि।


आपकी स्तुति और गुणों से अपने 

वो भी अब तक संतुष्ट न कर सकें 

मैं तो घोर असुर जाती का 

आप संतुष्ट क्या हो सकें मुझसे ?।


धन, कुलीनता, रूप, तप, विद्या 

और तेज, प्रभाव, बल, पौरुष 

बुद्धि और योग, ये बारह गुण 

कर न सकें भगवान को संतुष्ट।


परन्तु भक्ति से भगवान् तो 

गजेंद्र पर भी संतुष्ट हो गए 

करुणाकर भोले भक्तों के हित को 

उनकी पूजा स्वीकारा करते।


जो जो सम्मान प्रकट करे,भगवान् के प्रति 

वो वो भक्त को भी प्राप्त होता 

इसीलिए अयोग्य होने पर भी मैं 

भगवान् की महिमा का वर्णन कर रहा।


भगवान् आप सत्वगुण के आश्रय हैं 

सुंदर अवतार ग्रहण हैं करते 

करते लीलाएं अनेकों प्रकार की 

कल्याण के लिए इस जगत के।


मारने के लिए जिस असुर को 

आप प्रभु ने क्रोध था किया 

वो अब मारा जा चूका है 

क्रोध शांत अब कीजिये अपना।


हम सब आपके शांति स्वरुप के 

दर्शन की हैं बाट जोह रहे 

करेगा भक्त इस रूप का स्मरण प्रभु 

भय से मुक्त होने के लिए।


स्वामी, प्रसन्न होकर अब अपने 

चरणकमलों में बुलाइये मुझको 

समस्त जीवों का एकमात्र 

शरण और मोक्ष स्वरुप जो।


साधन बतलाइये कि जिससे 

भक्ति प्राप्त कर सकूं आपकी 

पार करा इस संसार चक्र से 

शरण में मुझे ले लीजिये अपनी।


ब्रह्मलोक के भोग न चाहूँ 

अपनी सन्निधि में ले लीजिये मुझे 

आपकी अनन्त कृपा है 

करकमल मिला आपका मुझे।


ब्रह्मा, शंकर,लक्ष्मी जी के सर पर भी 

आपने कभी नहीं रखा जिसे 

धन्य हूँ मैं कि मेरे सर पर 

रखा हुआ है, करकमल ये।


अँधेरा कुआँ ये संसार है 

पुरुष सभी गिरे हुए इसमें 

मैं भी गिरने जा रहा था 

बचा लिया देवर्षि नारद ने।


पिता मेरा वध करना चाहते 

आपने मेरी रक्षा की है 

सनकादि के वचन सत्य करने को 

किया ये आपने. समझता ये मैं।


सम्पूर्ण जगत एकमात्र आप ही 

आप कारणरूपसे थे, आदि में इसके 

अवधि के रूप में रहेंगे अंत में 

प्रतीति के रूप में, आप ही बीच में।


मनुष्य, पशु, पक्षी, ऋषि, देवता

और मत्स्य आदि अवतार ले 

आप लोकों का पालन करते 

विश्व के दैत्यों का संहार करें।


आप इन अवतारों के द्वारा 

रक्षा करें प्रत्येक युग में धर्म की 

कलयुग में गुप्त रूप में रहते 

इसीलिए आपका नाम त्रियुग भी।


बड़ी दुर्दशा है मेरे मन की 

कलुषित ये पाप वासनाओं से 

स्वयं भी ये अत्यंत दुष्ट है 

कामनाओं से आतुर रहता ये।


हर्ष, शोक, भय, लोक परलोक 

धन, पति, पुत्र अदि की चिंता 

आपकी कथाओं से इसे रस नहीं मिलता 

सदा ही है ये व्याकुल रहता।


इसके मारे मैं हीन हो रहा 

चिंतन कैसे करूँ इससे आपका 

स्वादिष्ट रसों की और जीभा खींचती 

सुंदर स्त्री की और जननेन्द्रियां।


त्वचा सुकोमल स्पर्श की और 

पेट भोजन की और खींचता 

कान मधुर संगीत की और 

भीनी भीनी सुगंध की और नासिका।


नेत्र सौंदर्य की और मुझे 

सदा खींचते ही हैं रहते 

कर्मेन्द्रियाँ जोर लगातीं अपने अपने 

विषयों की और ले जाने के लिए।


इसी प्रकार सभी जीव ये 

बंधन में पड़कर अपने कर्मों के 

गिरे हए हैं वो इस 

संसार रूपी वैतरणी नदी में।


जन्म से मृत्यु, मृत्यु से जन्म और 

दोनों के द्वारा कर्मभोग करते करते 

अपने, पराये भाव से युक्त हो 

करता मित्रता, शत्रुता किसी से।


दुर्दशा देख इस मूढ़ जीव की 

करुणा से द्रवित हो जाईये 

भगवान् प्रार्थना है आपसे अब 

इन प्राणियों को पार लगाइये।


विशेष अनुग्रह के पात्र होते हैं 

महान पुरुषों के, ये मूढ़ ही 

आपकी लीलाओं में मग्न मैं 

भय न मुझे वैतरणी का, तनिक भी।


शोक कर रहा हूँ मैं तो 

उन मूढ़ प्राणियों के लिए 

जो विमुख गुणगान से आपके 

फंसे रहे इन्द्रियों के विषयों में।


इस झूठे सुख के लिए ही 

भार ढोते संसार का सर पर 

अकेला मुक्त नहीं होना चाहता मैं 

इन असहाय गरीबों को छोड़कर।


इन भटके हुए प्राणियों के लिए 

सहारा न कोई सिवा आपके 

दुःख भोगने पर भी इन विषयों को 

नहीं छोड़े अज्ञानी पुरुष ये।


इसके विपरीत जो धीर पुरुष हैं 

सह लेते कामादि वेगों को 

और नाश हो इन विषयों का 

बस सहने से ही इनको।


मौन, ब्रह्मचर्य, शास्त्र श्रवण, तपस्या 

स्वाध्याय, सवधर्मपालन

युक्तियों से शास्त्रों की व्याख्या 

जप समाधि और एकांत सेवन।


मोक्ष के दस साधन प्रसिद्द ये 

परन्तु इन्द्रियां वश में नहीं जिनके 

जीविका के साधन, व्यवहारमात्र ही 

रह जाते हैं ये उनके लिए।


बीज और अंकुर के समान ही 

दो रूप बताये वेदों ने आपके 

कार्य और कारण ये दो, पर 

वास्तव में रहित आप प्राकृत रूप से।


परन्तु इन दो रूपों को छोड़कर 

कोई और साधन नहीं ज्ञान का आपके

कार्य और कारण दोनों में ढूंढ लें 

योगीजन भक्ति के बल से।


नमस्कार, स्तुति, समस्त कर्मों का समर्पण 

सेवा-पूजा, चिंतन चरणकमलों का 

और लीला कथा का श्रवण 

इन छ अंगों से करे आपकी सेवा।


प्राप्त नहीं बिना इस षडंग सेवा के 

आपके चरणकमलों की भक्ति 

सर्वस्व आप सब भक्तजनों के 

आप ही देते उनको मुक्ति।


नारद जी कहें कि बड़े प्रेम से 

हरि गुणों का वर्णन किया प्रह्लाद ने 

और चरणों में सिर झुकाकर 

फिर प्रह्लाद जी चुप हो गए।


क्रोध शांत हुआ नृसिंह जी का 

बोले प्रेम और प्रसन्नता से 

हे प्रह्लाद, तुम्हारा कल्याण हो 

दैत्यश्रेष्ठ, प्रसन्न मैं तुमसे।


जो अभिलाषा हो, मांग लो 

पूर्ण करूंगा इच्छा तुम्हारी 

परन्तु प्रलोभन दिए जाने पर भी 

उन्होंने किसी वर की इच्छा नहीं की।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics