श्रीमद्भागवत - १२२; नारायण कवच का उपदेश
श्रीमद्भागवत - १२२; नारायण कवच का उपदेश
राजा परीक्षित ने पूछा भगवन
सुरक्षित होकर जिससे इंद्र ने
शत्रुओं पर विजय प्राप्त की
सुनाईये उस नारायण कवच को हमें।
शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित
पुरोहित बनकर देवताओं के
नारायण कवच का उपदेश उन्हें दिया
उसे अब श्रवण को तुम मुझसे।
विशवरूप कहें, हे इंद्र
भय उपस्थित हो जब भी कोई
नारायण कवच धारण करके
रक्षा कर लेनी चाहिए शरीर की।
'' ॐ नम नारायणाय ''
ये अष्टाक्षर मन्त्र है
और '' ॐ नमों भगवते वसुदेववाय ''
ये द्वादशाक्षर मन्त्र है।
इन दोनों मन्त्रों का न्यास करे
फिर ॐ विष्णवे नम: का न्यास करे
उसके बाद इष्टदेव भगवान का ध्यान करे
और इस कवच का पाठ करे।
गरुड़ की पीठ पर श्री हरि ने
चरण कमल रखे हुए अपने
उनकी सेवा कर रही हैं
अणिमादि आठों सिद्धिआं ये।
प्रभु की शोभा अद्भुत है
और अपने आठ हाथों में
शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा
वाण, धनुष और पाश धारण किये।
सब प्रकार से और सब और से
वो ओंकारस्वरूप प्रभु रक्षा करें
मत्स्य मूर्ती भगवान जल के भीतर
रक्षा करें जल के जीव जंतुओं से।
रक्षा करें वरुण के पाश से भी वो
वामन भगवान् स्थल पर रक्षा करें
विशवरूप त्रिविक्रम भगवान आकाश में
नरसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि में।
वराह भगवान् मार्ग में रक्षा करें
पर्वत शिखरों पर परशुराम जी
और प्रवास में रक्षा करें मेरी
लक्ष्मण सहित श्री रामचंद्र जी।
भगवान् नारायण मारन - मोहन आदि
भयंकर अभिचारों और प्रमादों से
ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से
दत्तात्रेय विघ्नों से योग के।
भगवान् कपिल कर्मबन्धनों से
सनत्कुमार जी कामदेव से
हयग्रीव हमारी रक्षा करें
देवमूर्तिओं के अपराध से।
देवर्षि नारद सेवापराधों से
भगवान् कच्छप सभी नरकों से
कुपथ से भगवान् धन्वंतरि और
ऋषभदेव सुख दुःख अदि द्वंदों से।
यज्ञ भगवान् लोकापवाद से रक्षा करें
बलराम जी मनुष्यकृत कष्टों से
क्रोधवशा सर्पों के गण से शेष जी
व्यास जी रक्षा करें अज्ञान से।
बुद्धदेव पाखंडिओं से और प्रमाद से
कल्कि जी कलिकाल के दोषों से
ऐसे भगवन मेरी रक्षा करें
विभिन्न विभिन्न अपने रूपों से।
प्रात काल भगवन केशव जी
रक्षा करें गदा लेकर अपनी
कुछ दिन ढल जाने पर गोविन्द
रक्षा करें लेकर बांसुरी।
दोपहर से पहले नारायण अपनी
तीक्षण शक्ति लेकर करें रक्षा
दोपहर में भगवान् विष्णु जी
और चक्र सुदर्शन उनका।
प्रचंड धनुष लेकर रक्षा करें
भगवान मधुसूदन तीसरे पहर में
बह्मादि त्रिमूर्तिधारी माधव
रक्षा करें सायंकाल में।
सूर्यास्त के बाद ऋषिकेश
अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि में
पदमनाभ मेरी रक्षा करें
श्री हरि रात्रि के पिछले पहर में।
उषाकाल में भगवान जनार्धन
सूर्योदय के पूर्व श्री दमोदर
सम्पूर्ण संध्याओं में रक्षा करें मेरी
कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर।
सुदर्शन ! आपका आकार जो
समान है एक चक्कर के ही
अग्नि समान अत्यंत तीव्र हैं
आप के किनारों का भाग भी।
सब औ
र घूमते आप हैं
भगवान की ही प्रेरणा से
आप हमारी शत्रु सेना को
शीघ्र से शीघ्र जला डालिये।
कौमोद की गदा, आप तो
प्रिय हैं भगवान अजित को
वज्र के समान असह है
आपकी चिंगारिओं का स्पर्श तो।
मैं भगवान का सेवक हूँ, इसलिए
कुचल डालिये यक्ष, राक्षस, भूत को
और चूर चूर कर दीजिये
मेरे सारे शत्रुओं को।
शंख श्रेष्ठ, आप श्री कृष्ण के
फूंकने से शब्द करके ही
दहला दीजिये मेरे शत्रुओं को
यहाँ से भगाइये ये भयावह प्राणी।
धार बहुत ही तीक्षण है
भगवान की तलवार आपकी
छिन्न भिन्न करो मेरे शत्रुओं को
भगवान की प्रेरणा से ही।
सैंकड़ों चक्राकार मंडल हैं
भगवान की ढाल, आपमें
आँखें बंद कर दीजिये शत्रुओं की
अँधा कर दीजिये उन्हें।
सूर्यादि ग्रह, केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्प
हिंसक पशु, भूत प्रेतादि जो
इनसे और पापी प्रनिओं से
हमें जो जो भी भय हो।
और जो हमारे मंगल के विरोधी
वो तत्काल नष्ट हो जाएं
भगवान के नाम का तथा
आयुधों का कीर्तन करने से।
स्तुति की जाती है जिनकी
सामवेदीय स्तोत्रों से
अपने प्रभाव से विपतिओं से बचाएँ
वो गरुड़ जी और विष्वक्सेन जी हमें।
हरि के नाम, रूप, वाहन
आयुध और श्रेष्ठ पार्षद जो
सब प्रकार की आपतिओं से बचाएँ
बुद्धि, इन्द्रीओं, मन और प्राणों को।
जितना भी कार्य, कारणरूप जगत है
भगवान ही हैं वह वास्तव में
हमारे सारे उपद्रव नष्ट हों
इस सत्य के प्रभाव से।
सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान हमारे
सदा, सर्वदा, सब स्वरूपों में
और सबके रक्षक भगवन श्री हरि
सदा, सब जगह हमारी रक्षा करें।
यह नारायणकवच सुना दिया
देवराज इंद्र, मैंने तुम्हें
सब दैत्यों, यूथपतिओं को
अनायास ही तुम जीत लोगे उन्हें।
नारायण कवच को जो धारण करता
वो पुरुष जिसको भी देखे नेत्रों से
या अपने पैरों से छू दे जिसे
तत्काल मुक्त हो वो समस्त भयों से।
इस वैष्णवी विद्या को
धारण कर लेता पुरुष जो
उसे राजा, डाकू, बाघ और
प्रेत पिशाच का कोई ना भय हो।
देवराज, प्राचीन बात ये
एक कौशिक गोत्री ब्राह्मण ने
योगसाधना से शरीर त्याग दिया
इस विद्या को धारण करके।
जहाँ ब्राह्मण का शरीर पड़ा था
एक दिन उसके ऊपर से
अपनी रानिओं के साथ विमान में
गंधर्वराज चित्ररथ थे निकले।
वहां आते ही पृथ्वी पर गिर पड़े
सिर किये नीचे की और को
विमान भी आकाश से नीचे आ गया
गिर पड़े विमान सहित वो।
इस घटना से आश्चर्य हुआ उनको
बताया उन्हें वालखिल्य मुनिओं ने
यह प्रभाव नारायण कवच का
जो धारण किया था इस ब्राह्मण ने।
ब्राह्मण देवता की हड्डीओं को लेकर
प्रवाहित किया सरस्वती नदी में
चित्ररथ फिर स्नान कर वहां
वापस अपने लोक चले गए।
शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित
समयपर सुनता पुरुष जो
या धारण करे नारायणकवच को
वो सभी भयों से मुक्त हो।
इंद्र ने ये वैष्णवी विद्या
प्राप्त करके विशवरूप से
रणभूमि में असुरों को जीत लिया
त्रिलोकी का उपभोग करने लगे।