श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि
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"जब मैं मर जाऊं तो मेरी अलग से पहचान लिख देना
लहु से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना"
आज देश के साथ- साथ साहित्य समाज का बहुत बड़ा नुक़सान हुआ है ।साहित्य समाज ने आज एक कोहीनूर हीरा गवां दिया ।
मुझसे ग़म-ए-फिराक की मजबुरियां ना पूछ
दिल ने तुम्हारा नाम लिया और रो दिया ।
कितने खूबसूरत लफ़्ज़ कहे थे जनाब राहत इन्दोरी साहब ने , उर्दू के मशहूर शायर राहत इन्दोरी लाखों , करोड़ों दिलों पर राज करने वाले , नज़्म, गज़ल, और गीतकार होने के साथ-साथ एक अच्छे चित्रकार भी थे ।राहत साहब ने दर्जन भर से भी ज्यादा फिल्मों के लिए गीत लिखे ।
सत्तर साल के राहत साहब बहुत ही ज़िन्दा दिल इन्सान थे , उनके शेरों में हकीकत झलकती है , अपने शेरो में हमेशा ज़िंदा रहेंगे । राहत साहब द्वारा कही बातें
एक नदी के ये हैं दो किनारे दोस्तों ,
दोस्ताना ज़िन्दगी से मौत से रखो याराना दोस्तों
मज़ा चखा के ही माना हूं मैं भी दुनिया को समझ रही थी है ही छोड़ दूंगा ।राहत साहब एक ना भूलने वाली शख्सियत थे ।
क्या खूब कहा किसी ने जाने वाले के लिए ------
मुसाफ़िर था गया अपने सफ़र पर
सुकून मिलेगा उसको जा के अपने घर पर ।
दो शादियां और चार बच्चे , लेकिन दूसरी शादी जल्दी ही टूट गई ,तलाक हो गया -- मोहब्बत छोड़ना भी इतना आसान नहीं होता --------------मत रोको तड़पने दो शायद मोहब्बत में करार आ जाए शायद मेरे तड़पने से किसी की ज़िंदगी में बहार आ जाए ।
दर्द को डालते हैं नग़्मों में सोएं को साज़ में बदलते हैं
राहत तेरी याद में हम दिन - रात बिलखते हैं ।
ना रहेगा तू , ना रहेंगे ये चांद - सितारे
मगर तब भी ज़िंदा रहेंगे तेरे फंसाने ।
राहत साहब ने क्या खूब सूरत बात कही ---
दो गज़ सही मेरी मिल्कियत
ए मौत तूने मुझे ज़िमिदार बना दिया ।
हर बात करने का उनका शायराना अंदाज़ था , इस तरह से शायराना अंदाज में वो बात कह जाते थे कि उसे नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता , नमन उस शख्सियत को।
बस उनकी शान में इतना ही ----
तेरे नक्शे-कदम जो मिल जाए
बस यही काफी है सर झुकाने को ।
आरज़ू थी जिएंगे तेरे साए तले
मगर किस्मत को ये हरगिज़ मंज़ूर ना था ।