श्राद्ध का खाना
श्राद्ध का खाना
घर गई तो रसोई
चार तरह के व्यंजन से भरी पड़ी थी
मुझे पता है
मेरी माँ से इतनी मशक्कत नहीं होती
उनकी उम्र इसकी अनुमति नहीं देती
मैंने पूछा, "यह क्या कमाल है ?"
यह कोई कमाल नहीं श्राद्ध का खाना है
आज कुछ नहीं पका बस यहीं खाना है
दादी तो मेरी यह सब मानती नहीं थी
नानी तो कहती थी कोई दिखावा नहीं करना
सेवा नहीं की तो श्राद्ध भी नहीं करना
मुझे लकवाग्रस्त, असहाय वो नज़र आती है
इन पकवानों को देख मेरी आँख भर आती है
श्राद्ध करने से दिन के बोझ कम होते है
दिल के नहीं
कोई जीवित है तो उसका दिल न दुखे
ऐसा व्यवहार होना चाहिए
जो हमसे प्यार करते है
उस लाठी का भी ख़्याल होना चाहिए
आसपास के बूढ़ों की चार बातें सुन लेती हो
इसलिए नहीं कि मेरे अंदर उच्च संस्कार हैं
"संस्कार" भारी शब्द हैं यह सिर्फ़
नारी की ज़िम्मेदारी नहीं हैं
बल्कि यह एहतराम इसलिए है
क्योंकि मुद्दत से घर में कोई बुज़ुर्ग नहीं हैं
मैंने सोच लिया है
मुझे नहीं खाना
न मुझसे खाया जाना
यह श्राद्ध का खाना।