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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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शराब और शराबी

शराब और शराबी

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टूटी हुई सी डाल है मेरी

टेढ़ी-टेढ़ी सी चाल है मेरी

सब बोलते है में शराबी हूं

बड़ी रंगीन सी जिंदगी है मेरी


सारा जमाना जाये भाड़ में

सिर्फ़ एक मय के दरिया से 

बुझती नहीं है प्यास मेरी

सब दरिया में भरो शराब,


तब कुछ बुझेगी प्यास मेरी

देवों ने चौदवहां रत्न कहा है

ये हरयुग की है अमर डेयरी

मेरे लिये वो सोमरस लाओ


शीतल करे विरह-ज्वाला मेरी

सब जीते है जिंदगी पानी से

में जीता हूं जिंदगी शराब से

शराब से ही चलती है,सांसे मेरी


लोग शराब को यूँ ही गाली देते हैं

बिना बात के इसे मवाली कहते हैं

ये रूह तक भर देती जख़्म मेरे

लोकडाउन में बिना शराब रह गये


जहर जुदाई का पीकर सब सह गये

पर देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है

इसलिये शराब पीना मजबूरी है मेरी

ये ज़माना बड़ा बेवफ़ा है


सबके सब देते यहां दगा है

ये शराब ही है वफ़ा की देवी मेरी

ख़ुदा ने कुछ तो भरोसेमंद बनाया

ये शराब साथ देती है,मेरा वेरी-वेरी


टूटी हुई सी डाल है मेरी

टेढ़ी-टेढ़ी सी चाल है मेरी

सब बोलते है मैं शराबी हूं

बड़ी रंगीन सी जिंदगी है मेरी।


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