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Basudeo Agarwal

Abstract Others

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Basudeo Agarwal

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इन्द्रवज्रा छंद "शिवेंद्रवज्रा स्तुति"

इन्द्रवज्रा छंद "शिवेंद्रवज्रा स्तुति"

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(इन्द्रवज्रा छंद / उपेन्द्रवज्रा छंद / उपजाति छंद)

*सोरठा*

परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।

सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।


माथ नवा जयकार, मधुर स्तोत्र गा जो करें।

भरें सदा भंडार, औघड़ दानी कर कृपा।।


*शिवेंद्रवज्रा*

कैलाश वासी त्रिपुरादि नाशी।

संसार शासी तव धाम काशी।

नन्दी सवारी विष कंठ धारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।१।।


ज्यों पूर्णमासी तव सौम्य हाँसी।

जो हैं विलासी उन से उदासी।

भार्या तुम्हारी गिरिजा दुलारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।२।।


जो भक्त सेवे फल पुष्प देवे।

वाँ की तू देवे भव-नाव खेवे।

दिव्यावतारी भव बाध टारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।३।।


धूनी जगावे जल को चढ़ावे।

जो भक्त ध्यावे उन को तू भावे।

आँखें अँगारी गल सर्प धारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।४।।


माथा नवाते तुझको रिझाते।

जो धाम आते उन को सुहाते।

जो हैं दुखारी उनके सुखारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।५।।


मैं हूँ विकारी तू विराग धारी।

मैं व्याभिचारी प्रभु काम मारी।

मैं जन्मधारी तू स्वयं प्रसारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।६।।


द्वारे तिहारे दुखिया पुकारे।

सन्ताप सारे हर लो हमारे।

झोली उन्हारी भरते उदारी।

कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।७।।


सृष्टी नियंता सुत एकदंता।

शोभा बखंता ऋषि साधु संता।

तु अर्ध नारी डमरू मदारी।

पिनाक धारी शिव दुःख हारी।८।।


जा की उजारी जग ने दुआरी।

वा की निखारी प्रभु ने अटारी।

कृपा तिहारी उन पे तू डारी।

पिनाक धारी शिव दुःख हारी।९।।


पुकार मोरी सुन ओ अघोरी।

हे भंगखोरी भर दो तिजोरी।

माँगे भिखारी रख आस भारी।

पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१०।।


भभूत अंगा तव भाल गंगा।

गणादि संगा रहते मलंगा।

श्मशान चारी सुर-काज सारी।

पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।११।।


नवाय माथा रचुँ दिव्य गाथा। 

महेश नाथा रख शीश हाथा।

त्रिनेत्र थारी महिमा अपारी।

पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१२।।


*छप्पय*

करके तांडव नृत्य, प्रलय जग की शिव करते।

विपदाएँ भव-ताप, भक्त जन का भी हरते।

देवों के भी देव, सदा रीझो थोड़े में। 

करो हृदय नित वास, शैलजा सँग जोड़े में।

रच "शिवेंद्रवज्रा" रखे, शिव चरणों में 'बासु' कवि।

जो गावें उनकी रहे, नित महेश-चित में छवि।।


(छंद १ से ७ इंद्र वज्रा में, ८ से १० उपजाति में और ११ व १२ उपेंद्र वज्रा में।)


लक्षण छंद "इन्द्रवज्रा"


"ताता जगेगा" यदि सूत्र राचो।

तो 'इन्द्रवज्रा' शुभ छंद पाओ।

"ताता जगेगा" = तगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु


लक्षण छंद "उपेंद्रवज्रा"


"जता जगेगा" यदि सूत्र राचो।

'उपेन्द्रवज्रा' तब छंद पाओ।

"जता जगेगा" = जगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु


लक्षण छंद "उपजाति छंद"


उपेंद्रवज्रा अरु इंद्रवज्रा।

दोनों मिले तो 'उपजाति' छंदा।


चार चरणों के छंद में कोई चरण इन्द्रवज्रा का हो

और कोई उपेंद्र वज्रा का तो वह 'उपजाति' छंद के अंतर्गत आता है।



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