शिक्षा दिवस की विडंबना
शिक्षा दिवस की विडंबना
शिक्षा की खुली दुकानों में शिक्षक दोहरी मार खाता है।
जीवन को आयाम देने वाला प्रचलन और रोज़गार न चला जाए इस डर में उलझ के रह जाता है।
ईमानदार शिक्षक काम करते हुए भी मात खाता है।
जीवन की चुनौतियों से लड़ने की शिक्षा देने वाला अपने ही हक के लिए लड़ नही पाता है।
शिक्षक दिवस पर एक दिन के लिए शिक्षक का गान गाया जाता है।
सिस्टम कोई और चलाता है ...........लेकिन सब गलत हो रहा है।
संस्कृति- संस्कारों का जिम्मा सिर्फ शिक्षक पर आता है।
जिसकी बात हर कोई ..........अनसुना कर अपने मतलब की गली निकल जाता है।