STORYMIRROR

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

3  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

शीतलहर

शीतलहर

1 min
189

कँपकँपी होने लगी,

अंग ठिठुरने लगे,

कैसे हम उठ खड़े होंगे?

कान, नाक, मुंह

शिथिलता के

रूप लेकर

निरंतर रजाइयों में

दुबक गए हैं!

लगता हैं फिर नये

कानून के सर्द

हवाओं का झोंका

हमें बेचैन कर गए हैं!!


ना अंगीठियाँ

ना लकड़ियाँ

ना घासलेट का इंतजाम

कौन करे?

नए - नए पेचीदा कानून

मौलिक अधिकारों

की बात कौन सुने?

ठंठ के प्रकोप से

लोग सारे स्तब्ध हो रहे हैं!

शासक बंद कमरों में

अपनी आग सेंक रहे हैं!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract